सर्वमेध यज्ञ

   सर्वमेध यज्ञ (महर्षि दयानन्द सरस्वती)


            उस महा-मेले पर स्वामीजी ने बहुत-से व्याख्यान दिये । अनेक शास्त्रार्थ किये बीसियों वादियों को जीता। सैकड़ों जिज्ञासुओं को समझाया और भागवत खण्डन की सैकड़ों पुस्तकें बाँटी । स्वामीजी की 'पाखण्ड-खण्डिनी-पताका' और उपदेशों ने बहुत लोगों को अपनी ओर प्राषित किया, परन्तु इस कुम्भ पर स्वामीजी ने देखा कि जनता अज्ञान-अन्धकार में ठोकरें खा रही है विद्वान् स्वार्थान्ध होकर धर्म के नाम पर भोली-भाली जनता को लूट रहे हैं। साधु गृहस्थों से भी गये-बीते हैं। धम केवल प्राडम्बर बन गया है । इस सारी स्थिति को देखकर स्वामीजी ने सोचा कि अन्य साधुनों की भाँति रहने-सहने से काम नहीं चलेगा। अभी मुझे और तप तपना होगा । तप करके शक्ति का सञ्चय करना होगा। 


                                                                  महर्षि दयानन्द सरस्वती जीवन चरित्र 


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