सरलता और सौम्यता


सरलता और सौम्यता


        बालक आश्रित रहता है माता-पिता पर। जो मिलता है वही उसका वर्तमान है। बालक स्वयं नहीं जानता कि वह क्या है। यही बालपन की सरलता है, इस सरलता में किसी प्रकार का क्षोभ या विक्षोम नहीं होता। कोई लालच, चाहत या महत्वाकांक्षा का दर्शन नहीं होता। भोलापन ही इस बाल सरलता का दर्पण है।


        दूसरी ओर सन्त जानता है कि वह क्या है। सन्त को हर भले और बुरे कर्म का आभास होता है तभी तो वह अपने आचारण में सद्कर्म उतार कर दिग्दर्शित करता है कि मानव को अपने जीवन को किस प्रकार सौम्य और सरल रखना चाहिये। सरलता और सौम्यता के रहते कष्ट कम होंगे, किन्तु सरलता से दूर भागने पर कष्टों की संख्या बढ़ेगी। वर्तमान विश्व मंच पर उपलब्ध है ऐसे अज्ञानी जिन्हें समुचित जानकारी तो है, विद्वान् हैं किन्तु अज्ञानी होने के कारण उनकी इस विद्वता का लाभ जनमानस को नहीं मिलता। 


        ध्यान से देखें तो ऐसे भी विद्वान जानकार हैं कि सब कुछ जानते-वझते हए सद्कर्म के स्थान पर केवल अज्ञानता से पूर्ण कार्य करने में अपना श्रम और समय नष्ट करते हैं। पंडित हो यापरोहित,प्रोफेसर हो या प्राध्यापक,अध्यापक, नेतायासंत, धर्मार्थ गरुहों या उद्धारक और विचारक सभी तो जानकार है कि वर्तमान राष्ट्रीय चरित्र और भविष्य इन्हीं के हाथों में है। फिर भी अपने-अपने स्थान पर सभी पूर्ण नहीं है। जिसके कारण मिथ्या वाचन पर कोई रोक नहीं। गहन अध्ययन एवं विचार प्राप्त किये विना पांडित्य कर प्रदर्शन इस कमी के कारण है। प्रोफेसर वा अध्यापक या प्राध्यापक राष्ट्र निर्माण की पहली सीढ़ी है।जो सरल हृदय वालकों को राष्ट्र की अग्रणी निधि अर्थात् सनागरिक बना सकते हैं किन्तु वह सब कुछ कहाँ कर पाते है, जो चाहते तो हैं किन्तु उनमें सरलता का आभास नजर नहीं आता है। उनका लक्ष्य होता है स्वयं का अस्तित्व, दल का सहारा और देश का एक महत्त्वपूर्ण अंगयही सब कुछ पाने में अनेक वर्ष लग जाते हैं क्योंकि सरल हृदय होकर वे जो कुछ कहना चाह सकते थे, नहीं कह पाते हैं।


         धर्मगुरु, उद्धारक व विचारक सरल स्वभाव से जनमानस को आकर्षित करते हैं किन्तु नाना धर्माचरण वाले विभिन्न स्वभाव का दर्शन कराने वाले ये मनीषी अपने पूर्णतम प्रयास के पश्चात् भी द्वेष की भावना, लोभ, लालच और दुराचरण से मुक्त नहीं कर पायेयदि जनमानस सरल हृदय हो तो सब कुछ सहज हो सकता है। विडम्बना यही है कि सरल और सौम्य वातावरण को लाने वाले लोग विश्व मंच पर हैं किन्तु सफल नहीं हो पाते। वास्तविकता यही है कि सरलता और सौम्यता को जन-जन की आस्था बनाने के लिये सभी प्रकार के प्रयास करने चाहिये। सुख-सुविधा से परिपूर्ण कोई व्यक्ति न तो सरल हो पायेंगे . और न ही सौम्य हो सकेंगे। निदा फाजली के विचार हैं-


गुजरो जो बाग से दुआ मांगते चलो


जिसमें खिले हें फूल वो डाली हरी रहे।


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