संस्कार क्या है


संस्कार क्या है?


       महर्षि वामी दयानन्द सरस्वती ने संस्कारों पर विशेष बल देते हुए गर्भाधान से लेकर मृत्यु पर्यन्त सोलह संस्कारों को निश्चित रूप से करने के निर्देश दिये हैं। इन के अतिरिक्त गृह प्रवेश , व्यापार आरम्भ , शिलान्यास , शाला निर्माण, जन्म आदि कुछ अन्य संस्कारों का भी वर्णन हमें प्राप्त होता हैइससे पूर्व कि इन सब संस्कारों की विवेचना की जावे, हमें संस्कार के अर्थ को समझ लेना चाहिये। अत: आओ हम इस विषय में विचार करें:


       विकासशील देश, संस्थाएं अपने विकास की निश्चित दिशा निर्धा रित करने के लिए कई प्रकार की योजनाएं बनाया करती हैं। इन येजनाओं के माध्यम से एक निश्चित कार्य को करने तथा उस पर होने वाले व्यय व लगने वाले समय की रूप रेखा तैयार की जाती है। यदि ऐसी कोई योजना निर्धारित न हो तो कार्य होना सम्भव नहीं होताकुम्हार को इस बात का ज्ञान ही न हो कि उसके हाथों से क्या बनने वाला है तो वह कुछ भी तो नहीं बना सकता । जब एक निश्चित योजना उसके हाथ में होती है कि उस ने अमुक आकार व रूप का घडा तैयार करना है तो वह उसी के अनुरूप ही मिट्टी हाथ में लेता है, उसे उसी के ही अनुरूप शक्ल देता है तथा धीरे धीरे थपथपाते हुए संस्कारित करता है तभी हमें ठण्डा जल देने वाला घडा तैयार कर पाता है। इसी प्रकार आयुर्वेद में दवाओं के निर्माण में होता है। दवाओं की जितनी अधिक रगडाई होती है, उसकी शक्ति भी तो उतनी ही अधिक होती है । होम्योपैथी की दवाओं को जो झटके दिये जाते हैं, उससे इसकी शक्ति खूब बढती है। इसी का नाम संस्कार है। आजकल हम घरों में माबेल के पत्थर लगवा रहे हैंपत्थर बिछाने पर इसकी कई दिन तक खब माडाई करते हैं। इसी का नाम संस्कार है। जिससे संस्कारित मार्बल में खूब चमक आ जाती हैअतः अवगुणों को दूर कर सद्गुणों को लाने का नाम ही संस्कार है। महर्षि चरक ने भी इसका वर्णन इस पकार किया है :- संस्कारो हि गुणान्तराघानमुच्यते


       इसका यह अभिप्राय है कि संस्कार मानव में पहले से विद्यमान ढर्गणों को दूर करया नष्ट कर उसके स्थान पर अच्छे गुणों का आघान करते हैं। इसेही संस्कार कहा है ,यही ही संस्कारका अर्थ है, अभिप्राय है | 


      संस्कार शब्द के इस अर्थ के रूप से देखने पर यह सत्य हमारे सामने आता है कि संस्कार मानव के नव निर्माण की एक योजना है । मानव अपने जन्म के साथ ही दो प्रकार के संस्कार लेकर आता हैइनमें से एक तो वह संस्कार होते हैं, जिन का सम्बन्ध उसके विगत जन्मों से होता है । इसे जन्म जन्मान्तर के संस्कारों के नाम से जाना जाता है। इन संस्कारों को हम विगत जन्मों में उसके किये गए कर्मों का परिणाम भी कह सकते हैं। दूसरी प्रकारके संस्कार उसके वंशानुगत प्राप्त संस्कारों से होता है। यह संस्कार इसे माता पिता से प्राप्त होते हैं। दूसरी श्रेणी के संस्कार क्योंकि माता पिता से प्राप्त होते हैं अतः जैसे माता पिता होंगे, यह संस्कार भी उसी प्रकार के होंगे। यह अच्छे भी हो सकते है तथा बुरे भी हो सकते हैं | 


      महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने नवजात बालक को संस्कारों से इस प्रकारघेरने की प्रेरणा दी है कि वह जीवन पर्यन्त सुविचारों से सस्कारित होता रहे। उसे कुदृष्टि का अवसर ही न मिले । बुरा सोचने अथवा करने का समय ही उसे न मिले। इस प्रकार यदि मानव प्रति क्षण अच्छे संस्कारों में घिरा रहेगा, बंधा रहेगा तो उसके जीवन में बुरे संस्कार कभी उत्पात मचाने का प्रयास नहीं कर सकेंगे, चाहे वह उस के पूर्व जन्मों के संचित संस्कार हों अथवा माता पिता से मिले हुए संस्कार हो । यदि उसने वर्तमान जन्म में भी कुछ गन्दे संस्कारों की कमाई की होगी तो भी उसके इन अच्छे संस्कारों का इतना वेग होगा कि वह उसके बुरे सरंकारों को सिर उठाने का अवसर ही नहीं आने देंगे। वह उन्हें निर्जीव सा ही बनाए रखेंगे। अतः वैदिक संकति ने संस्कारों के माध्यम से हमें आध्यात्मिक विधि से मानव के नव निार्मण की जो योजना दी है, इस का यह अभिप्रायः कदापि नहीं कि ईश्वर विगत जन्म जन्मान्तरों के प्राप्त संस्कारों केफल उसे नहीं देता, यदि ऐसा हो तो ईश्वर न्यायकारी नहीं कहला सकता, किन्तु अच्छे संस्कारों के कारण , उनका वेग इतना बढ़ जाता है कि विगत प्राप्त संस्कार बलवान् नहीं हो पाते , वह दब जाते है तथा हमारे अच्छे कर्म व अच्छे संस्कार हमें सुपथ पर ले जाने लगते हैंइन्हें इतनी तीव्र शक्ति प्राप्त होती है कि यह अपना परिणाम शी दिखाने लगते हैं | 


      महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने जो सोलह संस्कार मानव के जन्म से मृत्यु पर्यन्त करने का निर्देश दिया है, इसका भी तो यही अभिप्रायः है कि बार बार मानव को चेताया जावे , उसे जगाया जावे , उसे बताया जावे कि मानव तूं मानव है। तेरे अन्दर शक्ति है । यदि तूं इस शक्ति का अपने अच्छे संकारों के द्वारा मानव के उत्थान के लिए प्रयोग करेगा , यदि तूंइसका परोप- कार के लिए प्रयोग करेगा , यदि तू इसका जन कल्याण केलिए प्रयोग करेगा, यदि तू गरीबों का सहायक बन कर प्रयोग करेगा, यदि तू दूसरों केढ़ःखों को अपना दुःख मानकर चले गा तो संसार तुझे याद करते हुए कहेगा कि अमुक व्यक्ति में बडे अच्छे संस्कार थे , जो वह जन जन का सहयोगी बनकर कार्य करता था। ऐसे व्यक्ति के माता पिता भी धन्य हो जावेंगे। उस के अमरत्व के साथ माता पिता का नाम भी जुडता रहेगा । कहने वाला कहेगा कि अमुक के पुत्र ने किताना अच्छा कार्य किया है। इस सब का भाव यह है कि महर्षि दयानन्द सरस्वती ने मानव जीवन में जिन सोलह संस्कारों को करने का आदेश दिया है, इनके माध्यम से मनुष्य को बार बार स्मरण दिलाया जाता है कि तू मनुष्य है। तूने अच्छे कार्य करने हैंतुने जाति का उत्थान करना है, दुःखियों की सहायता करनी हैदेश को सुरक्षित रखना है। यही तेरा कर्तव्य है, यही तेरा जीवन है। इसी मार्ग पर चल । तेरा तो कल्याण होगा ही, इस मार्ग पर चलने से तू औरों को भी संस्कारित कर उन्हें भी सदमार्ग पर चला पाने में सफल होगा । अन्यथा जिस मानव के जीवन को सुगम बनाने के लिए जो प्रति दिन सुख का सामान सरकर एकत्र कर रही हैं, वह सब मानव संस्कार रहित होने के कारण निष्प्रयोजन हो जावेगा । हम प्रतिदिन देखते है कि बसों की सीटें लोग फाड रहे हैं, स्कूलों के दरवाजे तोडे जा रहे हैं, गाडियों के बल्ब गायब हो रहे हैं, हमारी ऐतिहासिक धरोहरों का तो हाल ही ऐसा हो गया है कि पर्यटन के नाम पर इनकी दीवारों पर कोयले से अपना नाम पता लिख कर इन्हें गन्दा किया जा रहा है। यह सब गन्दे संस्कारों का ही तो परिणाम है । यदि उन्हें अच्छे संस्कार मिले होते तो ऐसा कदापि न होता | 


      अतः वैदिक संस्कृति की इस सबसे बडी योजना को महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने प्रचारित करने के लिए संस्कार पद्धति का निर्मा ण कर सोलह संस्कार अवश्यमेव करने के लिए प्रेरित किया है। ताकि सरकारों से मानव का नवनिर्माण किया जा सके।


       इसके साथ इस बात को भी जाना लोना आवश्यक है कि नए संस्कारों से पुराने संस्कारों को बहला जा सकता है। यदि विगत जन्मों के संचित बुरे संस्कारों के साथ मानव जन्म लेता है किन्तु इस जन्म में उसे अच्छे सुपथगामी मार्गदर्शक मिल जाते हैंउनकी प्रेरणा से वह प्रेरित होकर सुपथ को अपना लेता है तो विगत जन्मों के संस्कार उसे प्रभावित नहीं कर पाते तथा वह अच्छे कार्य करने लगता है। इस प्रकार विगत जन्म के संस्कारों को बदला अथवा दबाया भी जा सकता है । इस लिए ही तो महर्षि ने मानव जीवन में सोलह बार संस्कारों द्वारा उसे बार बार अच्छे मार्ग पर चलने की याद दिलाने को कहा है। यह वैदिक संस्कृति का आधार है। इससे मनुष्य को पूरी तरह से बदलने की शक्ति मिलती है। मानव के यह सोलह संस्कार हैं जिन में से कुछ तो जन्म से भी पूर्व किये जाते हैं । ऐसा ही एक संस्कार है गर्भाधान संस्कार। भोगवादी इसे विषय तृप्ति के रूप मे चाहे देखें किन्तु वैदिक संस्कृति इसे एक पवित्र यज्ञ के रूप में देखती है | 


       संक्षेप में हम कह सकते हैं कि संस्कार से अभिप्रायः बुराई के स्थान पर अच्छाई को स्थापित करना है तथा मानव का नव निर्मा करने का कार्य संस्कार करते हैं | 


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