सन्ध्या क्या है

सन्ध्या क्या है


      सम्-उपसर्ग पूर्वक ध्यै-चिन्तने से, अच्छी प्रकार एकाग्र मन से ध्यान करने का नाम सन्ध्या है। शिव संकल्प वाला बनना अन्तःकरण को शुद्ध करना ही भाव है


       शिव संकल्प का अर्थ है-सब मानसिक शक्तियों को केन्द्र में एकत्रित करके उपयोगी बनाना।                                      


       कुछ व्यक्ति सन्ध्या के मंत्रों को पढ़ लेने मात्र को सन्ध्या समझते हैं। वस्तुतः दो-चार मिनट में सन्ध्या नहीं होती है। यह तो पाठ मात्र है।


     जो फल मन्त्र से बिना अर्थ चिन्तन के मिलेगा वह पृथक् है। परन्तु सच्चे सुख आनन्द की प्राप्ति नहीं मिलेगी।                                                 


         महर्षि जी ने सत्यार्थप्रकाश में लिखा है यथा-समचित्त होकर योगी परमात्मा का ध्यान करते हैं वैसे ही सन्ध्या में उपासना भी करें।


 सन्ध्या वेद मन्त्रों से ही क्यों?


      क्योंकि वेद के इन पवित्र शब्दों को परमात्मा ने उन पवित्र ऋषियों के हृदयों में शब्द-अर्थ ज्ञान के रूप में प्रकट किया है। शब्दों के द्वारा ही एक उपासक प्रभु का साक्षात् सहज रूप से कर सकता है। लेकिन भक्त में सच्ची लगन हो। इसलिये सन्ध्या वेद मन्त्रों से ही करें। 


सन्ध्या प्रतिदिन क्यों करें?


      जैसे नवीन वस्त्र पहनने के बाद गन्दे हो जाते हैं उसी प्रकार आत्मा रूपी वस्त्र पर जीवन के व्यतीत होते-होते कुछ मल आदि दोष आवरण रूप में लग जाते हैं वस्त्रों पर पड़े मल को दूर करने हेतु साबुन जल आदि से धोने पर मल का निवारण होता है उसी प्रकार आत्मा की मलिनता दूर करने के लिए प्रतिदिन सन्ध्या करनी आवश्यक है। कुछ प्रमादी जन सोचते हैं जब बूढ़े होंगे तब कर लेंगे, अभी जीवन का आनन्द लोयह लोग स्वभाव से सरल हैं। सन्ध्या है मनःशान्ति साधन जुटाने हेतु उपायों की सूझ। इन्हें सन्ध्या रूपी आत्मिक भोजन का आनन्द प्राप्त करना चाहिये |     


      प्रतिदिन सन्ध्या से अन्त:करण की निर्मलता और विचारों की शद्धि होती है। आस्तिकता में दृढ़ता, निरभिमानता स्थिर होती है। साथ ही दीर्घायु की प्राप्ति भी होती है


 


 


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