समस्त आयु का ज्ञान है-आयुर्वेद में

समस्त आयु का ज्ञान है-आयुर्वेद में


          आयुर्वेद एक भारतीय चिकित्सा पद्धति है। भारत सरकार का ध्यान 1947 के बाद अब इस ओर गया हैआयुर्वेद जगत् में यह अत्यन्त प्रशंसा की बात है। दिल्ली में जैसा कि ऑल इण्डिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैडिकल साईंसिज है, वैसा ही विशाल आयुर्वेद का आयुर्विज्ञान संस्थान का शिलान्यास माननीय प्रधानमंत्री जी ने किया, जबकि इसकी सूचना टी.वीआदिद्वारा 16 अक्तूबर को दी गई तो चारों ओर आयुर्वेद के प्रशंसकों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई।


         स्वतन्त्रता का अर्थ तभी सार्थक होगा जब हम अपनी संस्कृति व धरोहरों को सम्मान देंगे। हिन्दी हमारी मातृभाषा है हम सभी को हिन्दी भाषा के महत्त्व को समझना चाहिएआज संस्कृत भाषा की उपेक्षा हो रही है। जबकि हमारे प्राचीन ग्रन्थ पाण्डुलिपियां, पुस्तकें तथा संसार की सर्वप्रथम पुस्तक वेद संस्कृत भाषा में ही हैं।


        आयुर्वेद ऋग्वेद का उपवेद है जिसमें समस्त आयु का ज्ञान है, विज्ञान है, विशेष बात यह है कि इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम नहीं करती। हमारे शरीर की प्रकृति के अनुकूल है। शरीर के लिए आत्मसात्म्य हैं, रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाली हैं, जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तो रोग पास ही नहीं आतेआयुर्वेद का उद्देश्य भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। चरक में लिखा है-


स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणम्, आतुरस्य रोग प्रशमनम् च।


         अर्थात् सबके स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा यदि व्यक्ति रुग्ण हो जाये तो रोगों को दूर करना। ऐसा उद्देश्य आयुर्वेद का है। आयुर्वेद हमारे जीवन हेतु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और आज आयुर्वेद आधुनिक चिकित्सा का स्थान ले सब पर उपकार कर रही है।


         आयुर्वेद में पञ्चकर्म की अपनी उपयोगिता है, जिसमें रोगी को स्नेहन स्वेदन वमन विरेचन व नस्य आदि क्रियाओं द्वारा शद्ध किया जाता है। पश्चात् काष्ठौषधियों एवं रसौषधियों द्वारा चिकित्सा की जाती है। आयुर्वेद का विज्ञान अति विस्तृत है, जिसमें काय एवं शल्य दोनों चिकित्सा है। काय चिकित्सा में काष्ठ व रस औषधियां पञ्चकर्म द्वारा व शल्य में शस्त्र कर्म द्वारा चिकित्सा कर रोगी को रोगमुक्त किया जाता है।


         आयुर्वेद का आज कितना महत्त्व है आयुर्वेद का अध्ययन करके ही पता चलता है। स्वस्थ व्यक्ति की परिभाषा का अति सुन्दर शब्दों में वर्णन है-


समदोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रिया।


प्रसन्नात्मेन्द्रिय मनः स्वस्थ इत्यभिधीयते॥


          अर्थात् रोगी के वात पित्त कफ आदि दोष सामान्य हों, अग्नि सामान्य हो, अर्थात् चय अपचय क्रिया विधिवत् हो, भूख उचित रूप से लगती हो, भोजन का पाचन भली प्रकार हो, उस भोजन के रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र आदि भली प्रकार बन रहे हों, अर्थात् धातुओं का पोषण सम्यक् रूप से हो रहा हो, मल-मूत्र का उत्सर्जन सम्यक् रूप से हो तो ऐसा व्यक्ति आधुनिक आयुर्वेद में स्वस्थ तो होता ही है परन्तु पूर्णतः स्वस्थ तभी होगा जब उसका आत्मा व मन भी प्रसन्न हो। अर्थात् पूरा शरीर ठीक हो, शारीरिक क्रियाएं उचित हों और मन प्रसन्न न हो तो वह पूरी तरह तो स्वस्थ नहीं कहा जा सकता। व्यक्ति तभी स्वस्थ होगा जब शरीर के साथ मन भी प्रसन्न हो।


         आयुर्वेद अपने आप में पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। ऐसा कोई रोग नहीं जिसका इसमें इलाज न हो। प्रत्येक रोग का इलाज आयुर्वेद से ही संभव है। इस किसी अन्य की सहायता की भी आवश्यकता नहीं है। अपने आप में जो आवश्यक ज्ञान होना चाहिए सब इसमें है।


         धन्वन्तरि त्रयोदशी के शुभ अवसर पर भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा पर अन्तर्राष्ट्रीय आयुर्वेद आयुर्विज्ञान संस्थान की सौगात जनता के लिए अनुपम उपहार है। इससे आज बढ़ते हुए रोगों, प्रदूषण के दुष्प्रभाव व व्यक्तियों की घटती रोग प्रतिरोधक क्षमता का निराकरण हो सकेगा और मनुष्य की जीवनीय शक्ति बढ़कर सबको स्वास्थ्य सम्बन्धित सुविधाएं सुलभ होंगी। आयुर्वेद का पुनः जन-जन में उपयोगिता का संचार बढ़ेगा।


        आधुनिक रासायनिक औषधियों से जहाँ रोगी में विषाक्तता (टोक्सिसिटी) बढ़ रही है, दुष्प्रभाव बढ़ रहे हैं, रोग प्रतिरोधक क्षमता घट रही है, उसके विपरीत आयुर्वेद प्राकृतिक स्तर पर शरीर के सात्म्य अर्थात् अनुकूल है, दुष्प्रभाव रहित हैविषाक्तता को और कम करती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को घटाती नहीं अपितु बढ़ाती है, जीवनीय शक्ति की वृद्धि करती है।


 


 


 


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