समधी-स्वागत ( गीत )


समधी-स्वागत ( गीत ) 


कछु बनि न सक्यौ सत्कार सजन मिलकर रहियो।


भाग्य हमारे बड़े प्रबल थे तुमसे समधी पाये।


ऐसे सुजन बसती गण भी धन्य भाग्य हैं आये।।


                             सजन मिलकर रहियो॥१


जनमासा सुख पाने लायक आया नहीं बनाना।


धन्य आपकी सहन-शीलता दुःख को ही सुख माना।।


                                    सजन मिलकर रहियो॥२


वैदिक विधि संस्कार हुआ है, वरन है ब्रह्मचारी।


शीलवन्त समधी और समधिन किस्मत खुली हमारी।।


                                        सजन मिलकर रहियो॥३


मिस्से कुस्से भोजन नहिं कछु सेवा योग्य बनाये।


शिवरी के बेर, सुदामा के तन्दुल सम तुमने अपनाये।।


                                        सजन मिलकर रहियो।।४


बेद ध्वनि, संस्कार हवन से घर को स्वर्ग बनाया।


बन्दबार और ध्वजा पताका तुमने ही हमें दिखाया।।


                                     सजन मिलकर रहियो॥५


धन दौलत की कमी न तुम्हारे देइ कहा महाराज।


बस लड़की ही भेंट करी है, महल बुहारन काज।।


                                  सजन मिलकर रहियो॥६


सास श्वसुर की आज्ञा पाले, पतिव्रत धर्म निभावे।


सुन्दर घर की गनी लक्ष्मी पति कौ नाम बढ़ावे।।


                               सजन मिलकर रहियो।।७


दोऊ कुलन की लाज बढ़ावे ईश्वर सर्वाधार।


नर और नारी एक सँग मिल बोलो जय-जयकार।।


                                  सजन मिलकर रहियो॥८


 


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