सायं संध्या व आत्म निरीक्षण


सायं संध्या व आत्म निरीक्षण 


      वैदिक स्वर्ग की तेरहवीं झाँकी सायंकाल पुनः यज्ञ सन्ध्योपासनप्रभु कीर्तन और महर्षि-स्तवन के रुप में हो।


      पश्चात् भोजन, दुग्धपान, करके माता-पिता बालकों का दैनन्दिन कार्य देखें, उन्हें उत्तम कहानियाँ सुनावें, उनसे उत्तम कवितायें एवं पद, मन्त्र, श्लोक आदि सनें, आवश्यक विचार विमर्श करें और अन्त में सोने से पूर्व निशा-गीत (शिव संकल्प) सूक्त-यज्जाग्रतोo आदि यजुर्वेद अ0 ३४ मन्त्र १ से ६ तक) का पाठ पद्यानुवाद सहित (नित्य कर्म विधिः से) करें। पश्चात् अभिवादनआत्म निरीक्षण एवं ईश स्मरण पूर्वक शयन करें।


      आत्म निरीक्षण- आर्य जीवन निर्माण के लिये अमोघ साधन है। निद्रादेवी की गोद में जाने के ठीक पूर्व आप ५से १० मिनिट तक सर्वथा स्वस्थ चित्त होकर बैठिये। सब अन्यथा विचार को मन से निकाल कर परमेश ओ३म् की साक्षी में स्वात्मा (अपने आप) से बातें कीजिये। विगत बारह झाँकियों को एक-एक करक अपने मानस नेत्रों के सामने लाइये और विचार कीजिये कि आपने इन झाँकियों को स्वजीवन में कहाँ तक स्थान दिया हैवैदिक स्वर्ग निर्माण सम्बन्धी व्रत का विचार कीजिए। यदि कोई त्रुटि हुई है त प्रभ चरणों में शक्ति याचना कीजियेकि अगले दिन वह भूल दहरने न पावेबस इस सरल-साधन से आपका जीवन नित्य पवित्रतर होता जायेगा।


      वैदिक स्वर्ग की पारिवारिक चर्या का प्रकरण यहाँ पूर्ण होता है इसके द्वितीय भाग 'व्यवहार के आलोक में' पति-पत्नी व्यवहार माता-पुत्र व्यवहार, भाई-भाई एवं भाई-बहिन व्यवहार, सासु-वधु व्यवहार, ननद-भावज व्यवहार वैदिक शिष्टाचार गीत संग्रह सुभाषित संग्रह आदि महत्वपूर्ण सचित्र झाँकियाँ दी गई हैं विश्वास है कि इस ग्रन्थ के मनन, आचरण और प्रचार से निश्चय ही हमारे गृहस्थ वैदिक स्वर्ग बन सकेंगे और तब वह दिन दूर नहीं होगा जब कवि की यह वाणी सार्थक होगी-


कहेगा जगत् फिर से एक स्वर में सारा| 


वही पूज्य (स्वर्ग) भारत गुरु है हमारा॥


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