सामूहिक प्रभाती गान


सामूहिक प्रभाती गान


(गीता डायरी से साभार)


कर प्रणाम तेरे चरणों में लगते हैं हम जग के काज


                          पालन करने को तब आज्ञा हम नियुक्त होते हैं आज।।


अन्तर में व्यापक हो भगवन् बागडोर पकड़े रहना


                              निपट निरंकुश चञ्चल मन को सावधान करते रहना।।


अन्तर्यामी को अन्तः स्थित देख सशंकित होवे मन।


                           पाप वासना उठते ही हो नाश लाज से वह जल भुन।।


जीवों का कलरव जो दिन भर सुनने में अपने आवे


                             तेरा ही गुणगान मान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे॥


तू ही है सर्वत्र व्याप्त प्रभु, तुझमें, यह सारा संसार।


                           इसी भावना से अन्तर भर मिलें सभी में तुझे निहार।।


प्रतिपल निज इन्द्रिय-समूह से जो कुछ भी आचार करें


                               केवल तुझे रिझाने को प्रभु सदा सत्य व्यवहार करें।


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