ऋषि दयानन्द की मान्यतायें

ऋषि दयानन्द की मान्यतायें


       वेद के मन्तव्य ही ऋषि दयानन्द के मन्तव्य हैं। उन्होंने ब्रह्मा से लेकर मनु और जैमिनि पर्यन्त ऋषियों तथा वेद प्रतिपादित मन्तव्यों को ही अपना मन्तव्य स्वीकार किया है। किसी नये मत पन्थ का प्रवर्तन उन्हें इष्ट न था। इस सचाई को उन्होंने 'स्वमन्तव्यामन्तव्य प्रकाश' के निम्न शब्दों में प्रस्तुत किया है- "मैं अपना मन्तव्य उसी को जानता हूँ कि जो तीन काल में सबको एक-सा मानने योग्य है। मेरा कोई नवीन कल्पना व मतमतान्तर चलाने का लेश मात्र भी अभिप्राय नहीं है। किन्तु जो सत्य है उसको मानना मनवाना, और जो असत्य है उसको छोड़ना और छुड़वाना मुझको अभीष्ट है' (स्वमन्तव्यामन्तव्य )                                                   


                                                                                                -सत्यार्थ प्रकाश


 


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