ऋषि दयानन्द के अनुसार संस्कार महत्व

ऋषि दयानन्द के अनुसार संस्कार महत्व


          वे मानते हैं कि सुख-दुःख, हानि-लाभ में आत्मवत् व्यवहार करने वाला ही 'मनुष्य' है। मानव को मानव बनाने के लिए ऋषि दयानन्द १६ संस्कारों का महत्व प्रतिपादन करते हैं। 


           महर्षि के शब्दों में संस्कारों की व्याख्या इस प्रकार है"संस्कार उसको कहते हैं कि जिससे शरीर मन और आत्मा उत्तम होवें। वह निषेकादि श्मशानान्त १६ प्रकार का है। इसको कर्तव्य समझता हूँ। और दाह के पश्चात् मृतक के लिए कुछ भी न करना चाहिए।"


          बीच के काल-खण्ड में मानव-निर्माण मूलक वेदोक्त संस्कारों की प्रक्रिया लुप्तप्राय हो गई थी, महर्षि ने उसका पुनरुद्धार किया और इसके लिए उन्होंने 'संस्कार विधि:' का प्रणयन किया। 


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