ऋषि दयानन्द और गौ-रक्षा

ऋषि दयानन्द और गौ-रक्षा


        गौ माता को महर्षि दयानन्द मानवता का मानबिन्दु और वैदिक (भारतीय) संस्कृति का मूक प्रतिनिधि मानते हैं। गो-पालन के अर्थशास्त्र को एक सच्चे अर्थ शास्त्री के रूप में उन्होंने अपनी 'गोकरुणानिधि' नामक पुस्तिका में संविवेचन समझाया है। इस प्रकार वे महान् अर्थशास्त्री भी थेगो-रक्षा (गौ-हत्या बन्दी) के लिए उन्होंने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था तथा रिवाड़ी में सबसे पहली 'गोशाला' भी उन्होंने स्थापित की थी। पवित्र वेद में प्रश्नोत्तर की शैली में बताया है-'कोऽस्तु मात्रा न विद्यते' अर्थात् ऐसी कौन वस्तु है जिसकी तुलना की अन्य वस्तु न हो? उत्तर में कहा है-'गोऽस्तु मात्रा न विद्यते' गाय की तुलना में कोई वस्तु नहीं है। गाय के इस अतुलनीय महत्व को महर्षि सम्पूर्ण हृदय से मान्यता देते हैं।


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