रोशनलाल मेहरा

बम-प्रयोग में शहीद किशोर क्रान्तिकारी मेहरा


रोशनलाल मेहरा


      सत्रह साल की भी क्या उम्र होती है? खेलने-कूदने, खाने-पीने, पढ़ने-लिखने और लाड-प्यार पाने की। किन्तु इस उम्र में भी जिसके हृदय में आजादी की ज्वाला प्रज्वलित हो रही हो उसे इन बातों से क्या मतलब? सत्रह साल के इतने छोटे-से क्रान्तिकारी थे रोशनलाल मेहरा !! इस छोटी-सी उम्र में उसे बड़ा क्रान्तिकारी बनाया था उसकी आदरणीया माता श्रीमती ललितादेवी ने। वह एक देशप्रेमी महिला थी और उसी ने मेहरा को देशप्रेम की बूंटी पिलायी थी। वह चूंटी मेहरा की रग-रग में समा गयी।


      पिता का नाम था श्री धनीराम। काम से भी असलियत में धनी थे। अमृतसर में रेशमी कपड़ों का अच्छा व्यापार था। इसी धनी पिता के घर खत्री परिवार में मेहरा का जन्म हुआ। देशप्रेम के संस्कार देकर माता ललितादेवी स्वर्ग सिधार गयी। उस समय रोशनलाल की आयु सत्रह वर्ष थी। पिता ने दूसरा ब्याह रचा लिया। दूसरी मां वस्तुतः 'विमाता' निकलीं।


      इसी बीच रोशनलाल क्रान्तिकारी शंभूनाथ आजाद के संपर्क में आये। हृदय का देशप्रेम क्रान्तिकारियों के संपर्क में आने से ज्वाला बनकर फूट पड़ा। क्रान्ति-पार्टी के सदस्य बनकर गतिविधियों में सक्रिय योगदान करने लगे। उस समय अमृतसर में शंभूनाथ के अलावा दयाशंकर, उमाशंकर, गोविन्द राम वर्मा, रामसरन आदि क्रान्तिकारी गुप्त रूप से कार्यरत थे। सन् १९३०-३२ के हलचल भरे दिन थे। कहीं असहयोग आन्दोलन तो कहीं क्रान्ति-आन्दोलन ने अंग्रेजों की नींद उड़ा रखी थी। स्थान-स्थान पर स्वतन्त्रता प्रेमियों पर अत्याचार किये जा रहे थे। अमृतसर की कोतवाली इन अत्याचारों के लिए कुख्यात हो चुकी थी। लोग उसे 'बूचड़खाना' कहा करते थे। क्रान्तिकारियों ने बदला लेने का निश्चय किया कि इस 'बूचड़खाने' के 'बूचड़ों' को गद्दारी की सजा दी जाये। यह भार रोशनलाल और उमाशंकर ने अपने ऊपर लिया। दोनों वीरों ने सफलतापूर्वक इस काम को कर दिखाया। कोतवाली बम के धमाके से दहल गयी। पुलिस धर-पकड़ के लिए धूल फांकती फिरती रही किन्तु सभी युवक साफ बच निकले।


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