रोलट एक्ट और जलियांवाला बाग की बर्बर घटना

रोलट एक्ट और जलियांवाला बाग


की बर्बर घटना


      तब प्रथम विश्वयुद्ध (१९१४-१९१९) चल रहा था उसी समय भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए भारत तथा विदेशों में अनेक प्रकार की गतिविधियां प्रारंभ हो गयी थीं। इनमें क्रान्तिकारी कार्यक्रमों का आयोजन मुख्य लक्ष्य था। भारतवासी तथा भारत के प्रवासी यह मनौती कर रहे थे कि इस युद्ध में अंग्रेज गठबन्धन हारे और जर्मनी जीत जाये, क्योंकि जर्मनी भारत की आजादी का समर्थक और सहयोगी था, किन्तु भारतीयों की यह मनौती पूरी नहीं हुई। जर्मनी हार गया और इसके साथ ही भारतीयों का भाग्य भी हार गया। इस प्रकार आजादी का लक्ष्य भी अधूरा रह गया।


      अंग्रेज सरकार की विजय होने के बाद भी अंग्रेज भारतीयों को किसी प्रकार की ढिलाई नहीं देना चाहते थे। उन्होंने इस अवधि में उठे जन-आंदोलनों को जड़ से कुचल देने का इरादा बनाया और इसके लिए एक राजद्रोह निवारण समिति (सिडीशन कमेटी) बनायी जिसके अध्यक्ष अंग्रेज न्यायाधीश रोलट थे। इस कमेटी ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से लेकर सभी क्रान्तिकारी और गैर क्रान्तिकारी कार्यक्रमों की समीक्षा की और उनका दमन करने के लिए सुभाव दिया। इस समिति की सिफारिशों को क्रियान्वित करने के लिए एक विधेयक बना जिसे 'रोलट एक्ट' नाम दिया गया। इस विधेयक के द्वारा भारतीयों के आजादी प्राप्त करने के सारे अवसर छीन लिये गये थे। 


      सारे देश में इसके विरुद्ध आन्दोलन खड़े हो गये। इसी अवसर पर दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकार के लिए लड़ चुके महात्मा गांधी भी कार्यक्षेत्र में आये और उन्होंने घोषणा की कि यदि सरकार यह कानून बनायेगी तो देश में असहयोग आन्दोलन शुरू किया जायेगा और अंग्रेजों का भारत में रहना असम्भव कर दिया जायेगा। इस एक्ट के द्वारा अंग्रेज सरकार ने जितना दमन करने की सोची थी, विद्रोह उतना ही व्यापक स्तर पर भड़क उठा।


      इसी रोलट एक्ट के विरोध में जलियांवाला बाग में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया था।


      १३ अप्रैल १९१९ को वैसाखी का पवित्र त्यौहार था। लगभग २०-२५ हजार आबाल वृद्ध-नरनारी अमृतसर के जलियांवाला बाग में रोलट एक्ट का शान्तिपूर्ण विरोध करने के लिए एक जनसभा के रूप में एकत्रित हुए थे। यह बाग चार दीवारी से घिरा था और इसमें से निकलने का एक ही रास्ता था। अंग्रेज सरकार को स्वाधीनता के लिए जुटी इतनी बड़ी भीड़ नहीं सुहाई। आजादी के इच्छुक भारतीयों को भयभीत करने के लिए कुख्यात और क्रूर जनरल डायर एक पलटन को लेकर आयाउसने पहले बाग के रास्ते को रोक लिया और फिर सेना ने बाग को घेर लिया। फिर शान्त एवं निहत्थी उस जनसभा पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी। रास्ते की ओर सेना खड़ी थी। हथियारबंद सैनिकों को देखकर लोग दीवार फांदने लगे। सैनिकों ने दीवार फांदने वालों को विशेष रूप से निशाना बनाया। हजारों की भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चल रही थीं। पलटन के पास जब तक आखिरी गोली रही, गोली चली। गोलियां समाप्त होने के बाद बर्बर जनरल डायर की गोरी पलटन रोते-बिलखते, चीखते-चिल्लाते, घायल बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं, युवकों को वहीं जैसा का तैसा छोड़कर चली गई। बाग में लाशों के ढेर लग गये थे। पन्द्रह मिनट में कुल १६५० राउण्ड गोलियां चलीं। एक गोली कई-कई लोगों को घायल करती या मारती गयी। डर के मारे जहां भीड़ और गहरी हो गई वहीं पर इशारा करके गोली चलवायी गयी। जन. डायर को जैसे हत्या का पागलपन सवार था।


      दुनिया के इस सबसे अधिक नृशंस काण्ड में एक हजार के लगभग लोग मारे गये और दो हजार के लगभग घायल हुए। सभ्यता के इतिहास में इतना क्रूर और घृणित हत्याकांड कभी नहीं हुआ।


      इस जघन्य व्यापक हत्याकाण्ड के विरोध को दबाने और इस पर लीपापोती करने के लिए अंग्रेज सरकार ने इसकी जांच के लिए हण्टर कमीशन बैठाया। जनरल डायर ने उसके सामने जो बयान दिया उसमें पश्चात्ताप का रत्तीभर भी अंश नहीं था, अपितु उसने जले पर और नमक छिड़क दिया। जब उससे पूछा गया कि क्या उसने लोगों को पहले तितर-बितर करने का प्रयास किया ? और क्या गोलीकाण्ड के बाद घायलों की मदद की ? बर्बर डायर ने बड़े अहंकार के साथ उत्तर दिया कि "मैंने लोगों को तितर-बितर करने की आवश्यकता नहीं समझी MA और उस समय घायलों की मदद करना मेरा कर्तव्य नहीं था।'


      भारतीय जनता की इस पीड़ा को पंजाब के गवर्नर माइकल ओडायर ने और बढ़ा दिया। उसने एक तार भेजकर डायर के कार्य को न केवल उचित ठहराया अपितु उसकी प्रशंसा भी की। ऐसे बर्बर लोगों का इलाज शान्ति नहीं, क्रान्ति ही को सकती है। क्रन्तिकारी ऊधमसिंह ने जनरल डायर के देश इंग्लैंड जाकर उसकी हत्या से इस नृशंस काण्ड का कुछ बदला तो चुका ही लिया।


      भारतीय जनता को आतंकित करने के लिए अंग्रेज सरकार ने जलियांवाला बाग का घृणित काण्ड किया किन्तु इससे स्वाधीनता प्राप्ति के लिए जोश और उत्साह में कमी नहीं आयी अपितु यह काण्ड स्वाधीनता- प्राप्ति का एक प्रमुख कारण बना। यह काण्ड अंग्रेजी सिंहासन का पलीता बनकर सामने आया। 


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