राव तुलाराम

राव तुलाराम


      हरियाणा प्रान्त के जिला रेवाड़ी के निकट स्थित 'रामपरा' नाम स्थान से अपना शासन चलाने वाले राजा राव तुलाराम ने १८५७ की क्रान्ति में सक्रिय योगदान देकर भारत की स्वतन्त्रता के निश्चय को आगे बढ़ाया था।


      १० मई १८५७ को जब हरियाणा के अम्बाला और उत्तर प्रदेश के मेरठ आदि में विद्रोह फूट पड़ा तो राव तुलाराम भी अपनी सेना लेकर दिल्ली की ओर बढ़े। अंग्रेजों को सूचना मिल गयी थी कि राव तुलाराम विद्रोह का नेतृत्व कर रहा है। अंग्रेज सरकार ने उसका दमन करने के लिए फोर्ड को सेना लेकर भेजा। मार्ग में सोहना और तावड़ के बीच दोनों का मुकाबला हुआ। फोर्ड हार गया। उसकी सेना में भगदड़ मच गयी और वह दिल्ली भाग आया।


      उधर मेरठ में राव तुलाराम के चाचा राव जीवाराम के दूसरे पुत्र राव कृष्णगोपाल कोतवाल पद पर थे। उन्होंने विद्रोह का साथ देते हुए मेरठ के सारे कैदखाने खोल दिये। अपनी एक सेना एकत्र कर मेरठ में विद्रोह का झंडा बुलंद करते हुए दिल्ली आये। दिल्ली में बहादुरशाह जफर को नेता स्वीकार कर राव तुलाराम की सहायता करने रेवाड़ी पहुंचे। राव तुलाराम ने रेवाड़ी में स्वाधीनता के लिए योजनापूर्वक युद्ध करने के लिए राजाओं-नवाबों की एक बैठक बुलायीइसमें जोधपुर, अलवर, बल्लभगढ़, निमराणा के राजा और झज्जर, फरुखनगर, पटौदी, फिरोजपुर झिरका के नवाबों को आमन्त्रित किया गया। जोधपुर के राजा तथा झज्जर, फरुखनगर, फिरोजपुर झिरका के नवाबों ने सम्मिलित होने से इन्कार कर दिया। राव तुलाराम ने धैर्य नहीं छोड़ा। जो सहयोगी मिले उन्हीं के सहयोग से एक सेना का गठन किया। नवाब झज्जर का दामाद समदखां पठान राव साहब की सेना में शामिल हुआ। चचेरे भाई गोपालदेव को सेनापति नियुक्त किया। 


      अंग्रेज सरकार ने सेनाधिकारी फोर्ड को और अधिक सेना और सैन्य सामग्री से सुसज्जित करके राव तुलाराम पर आक्रमण करने के लिए भेजा। अंग्रेज सेना की अधिक शक्ति को जानकर राव तुलाराम रामपुरा को छोड़ महेन्द्रगढ़ की ओर निकल गये। पीछे से फोर्ड ने गोकुलगढ़ और रामपुरा के स्थानों को नष्ट किया और राव तुलाराम का पीछा करते हुए महेन्द्रगढ़ की ओर चला |


      राव तुलाराम ने महेन्द्रगढ़ पहुंच कर किले के अध्यक्ष ठाकुर स्यालुसिंह (बाद में कुतानी गांव निवासी) से स्वाधीनता में साथ देने का आग्रह किया और स्वतन्त्रता के योद्धाओं के लिए किले का द्वार खोलने का अनुरोध किया ताकि उसमें मोर्चा बनाकर अंग्रेज सेना से लड़ा जा सके। किन्तु स्यालु सिंह ने अंग्रेज सरकार के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करते हुए द्वार नहीं खोला। बाद में अंग्रेज सरकार ने ठाकुर स्यालुसिंह को इस भक्ति के पुरस्कार रूप में तथा स्वतन्त्रता सेनानियों का सहयोग न करने के ईनाम के रूप में सारा कुतानी गांव दे दिया।


      राव तुलाराम वहां से नारनौल के पास स्थित नसीपुर गांव के पास अपनी सेना का मोर्चा लगाकर डट गये। अंग्रेज सेना तथा स्वाधीनता-सेना में तीन दिन तक युद्ध हुआ। राव तुलाराम ने हाथी पर सवार अंग्रेज सेनाधिकारी मैटकाफ काना को मार गिराया। उसके बाद अंग्रेज सेना में भगदड़ मच गयी फोर्ड मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ और दादरी के पास मोड़ी नामक गांव में एक चौधरी के यहां आकर शरण ली। बाद में अंग्रेज सरकार ने फोर्ड की जान बचाने के पुरस्कार रूप में बराणी गाव (जिला झज्जर) में बहत ज्यादा जागीर इस चौधरी को इनाम के रूप में दी और उस गांव का नाम 'फोर्डपुरा' रखा। आज भी यह इसी नाम कुख्यात है।


      - राव तुलाराम की स्वाधीनता सेना काबू में आती न देख अंग्रेजों पटियाला, नाभा, जीन्द, जयपुर से सेना बुला ली। इन देशद्रोही राजा ने अंग्रेजों का साथ दिया। राव तुलाराम की सेना बहुत कम पड गयी। फिर भी राव साहब के नेतृत्व वाली सेना ने हिम्मत नहीं छोडी। वीरता के साथ मुकाबला किया। इस युद्ध में राव तुलाराम के चचेरे भाई राव कृष्णगोपाल और राव रामलाल तथा राव किशनसिंह, सरदार मणिसिंह मुफ्ती निजामुद्दीन, शादीराम, रामधनसिंह, समद खां पठान बलिदान हो गये। राव साहब की सेना को पराजय का सामना करना पड़ा। फिर वे विद्रोह भूमि कालपी पहुंचे। वहां नाना साहब पेशवा, उनके भाई राव साहब, तात्या टोपे और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि एकत्रित थेउन्होंने राव तुलाराम का सहर्ष स्वागत किया। विचार-विमर्श के बाद उन्होंने बाहरी सहायता प्राप्त करने के लिए राव तुलाराम को अफगानिस्तान भेजा। वे वेश बदलकर अहमदाबाद और बम्बई होते हुए बसरा (ईराक) पहुंचे। इनके साथ पलवल के राजा नाहरसिंह, श्री रामसुख और सैय्यद नजात अली थे। वहां अंग्रेज सरकार को इनकी जानकारी मिल गयी। ये वहां से बचकर सिराज (ईरान) पहुंचे। तेहरान स्थित अंग्रेज राजदूत ने ईरान के शाह से इन्हें गिफ्रतार करने का अनुरोध किया किन्तु उसने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। कुछ समय बाद ये तेहरान से काबुल के अमीर के पास आ गये। लगभग छह वर्ष वहां रहने के बाद पेचिस की बीमारी से इनका देहान्त हो गया। इस प्रकार एक योद्धा अपना सर्वस्व मातृभूमि पर लुटाकर शहीद हो गया।


      स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के दण्डस्वरूप राव तुलाराम की तथा आस-पास की रियासतों को अंग्रेजों ने छिन्न-भिन्न कर दिया तथा सभी प्रकार की सुविधाओं से वंचित कर दिया। राव साहब के राज्य की कोट कासिम की तहसील जयपुर राज्य में तिजारा व बहरोड़ तहसील अलवर में, नारनौल तथा महेन्द्रगढ़ पटियाला में, दादरी जीन्द में, बावल नाभा में, नाहड़ तहसील के चौबीस गांव दुजाना रियासत में देकर उनके राजाओं-नवाबों को देशद्रोह के बदले पुरस्कृत किया गया। ऐसे ही देशद्रोहियों के कारण समय-समय पर स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए किय गये प्रयास विफल हो गये अन्यथा १८५७ में ही भारत आजाद हो जाता।


 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।