राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

असहयोग आन्दोलन के प्रणेता


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी


      आजादी के आन्दोलन के कर्णधार महात्मा गांधी आज किसी परिचय की अपेक्षा नहीं रखते। असहयोग एवं अहिंसात्मक आन्दोलनों के द्वारा जन-जागरण कर आजादी प्राप्त कराने में गांधी जी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसी कारण आपको 'राष्ट्रपिता' कहकर स्मरण किया जाता है |


      आपका पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गांधी था। पिताश्री का नाम कर्मचन्द थाआपका जन्म गुजरात में कठियावाड़ के पोरबन्दर नामक स्थान पर २ अक्तूबर १८६९ को हुआ। आपने विदेश में वकालत की शिक्षा प्राप्त की और फिर वकालत करने लगे। एक बार आप दक्षिण अफ्रीका गये तो वहां गोरों का भारतीयों के प्रति अपमानजनक व्यवहार देखकर आपका हृदय व्याकुल हो उठा। एक दिन आप रेल के उस डिब्बे में चढ़ गये जिसमें गोरे बैठे थे। आपका बिस्तर बाहर फेंककर आपको नीचे उतार दिया गया। इन घटनाओं ने सामाजिक-समानता के संघर्ष के लिए प्रेरित किया। दक्षिण अफ्रीका में आपने पर्याप्त कार्य किये। भारत में आजादी के प्रति भावनाएं उभरने पर आप यहां आ गये। आपने असहयोग एवं अहिंसात्मक तरीके से अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आन्दोलन किये। अनेक बार जेल की यातनाएं सहीं। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आपने अनेक बार अनशन किया। १९२० में आपने असहयोग आन्दोलन की घोषणा की। १३ मार्च १९२२ को आपको गिरफ्तार किया गया।


      आपने तत्कालीन गवर्नर लार्ड इर्विन को पर्याप्त समझाने का प्रयास किया कि अंग्रेजों को भारत छोड़ कर चले जाना चाहिए। जब इर्विन नहीं माना तो कांग्रेस ने ३१ दिसम्बर १९२९ को लाहौर में पूर्ण स्वराज्य की घोषणा कर दी और स्थान-स्थान पर आन्दोलन शुरू कर दिया। डांडी यात्रा कर नमक न बनाने की सरकारी आज्ञा को भंग किया। ९ अगस्त १९४२ को 'भारत छोड़ो' आन्दोलन आरम्भ किया। गांधी जी को पुनः गिरफ्तार कर लिया गया। इस प्रकार असहयोग-आन्दोलनों और साथ ही क्रान्तिकारियों के आतंक से डरकर १५ अगस्त १९४७ को देश आजाद हुआ। ३० जनवरी १९४९ को नत्थूराम गोडसे की गोली से महात्मागांधी शहीद हुए। आगे प्रस्तुत है उन्हीं की लेखनी से लिखा जेल का एक अनुभव। 


असहयोग आन्दोलन और चौरी चौरा काण्ड


      अंग्रेजी शासन के अत्याचारों से सारे देश में नीचे-नीने विद्रोह की आग सुलगने लगीऐसे अवसर पर कांग्रेस ने भी ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध कार्यक्रम आरम्भ कर दिये। महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन चला और सफल रहा। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का नारा दियास्कूल, कॉलेजों का भी बहिष्कार किया गया। परिणाम यह निकला कि लगभग २५,००० देशभक्तों को जेलों में बंद कर दिया। महात्मा गांधी को छोड़कर सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये।


      इसी समय जिला गोरखपुर के 'चौरी चौरा' नामक स्थान पर ५ फरवरी १९२२ को एक घटना घटी जिसका असहयोग आन्दोलन पर तो नकारात्मक प्रभाव पड़ा ही, कांग्रेस में भी फूट उभर आयी। 'चौरी चौरा' स्थान पर देशभक्त लोग जुलूस निकाल रहे थे। पुलिस ने उसको रोककर तितर-बितर होने के लिए कहा किन्तु भीड़ उसी प्रकार बनी रही। पुलिस ने जुलूस पर तब तक गोलियां दागीं जब तक गोलियां समाप्त न हो गयीं। गोलियां समाप्त होते ही पुलिस वाले डरकर थाने में चले गये और थाने को अन्दर से बंद कर लियाजनता ने थाने को आग लगा दी, गोली चलाने वाले २० पुलिसकर्मी उसमें जल कर मर गये। महात्मा गांधी ने जब यह खबर सुनी तो १२ फरवरी १९२२ की कार्यसमिति में यह कहकर असहयोग आन्दोलन बंद करने की घोषणा कर दी कि 'अभी जनता सत्याग्रह करने के योग्य नहीं हुई है'|


      महात्मा गांधी के इस निर्णय से साधारण कांग्रेसियों के अतिरिक्त उनके प्रमुख शिष्य और कुछ बड़े नेता भी रुष्ट हो गये। उनमें से चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू आदि ने पृथक् 'स्वराज्य दल' की स्थापना कर ली। जो क्रान्तिकारी क्रान्ति को छोड़कर असहयोग आन्दोलन की ओर झुके थे, वे फिर से क्रान्तिकारी गतिविधियों में लग गये। इनमें चन्द्रशेखर आजाद का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। नये क्रान्ति दल भी उभरने लगे।


      अंग्रेज सरकार ने, जो महात्मा गांधी की गिरफ्तारी से होने वाली क्रान्ति से घबरा रही थी, यह देखकर कि आपस में फूट पड़ गयी है, १३ मार्च को गिरफ्तार कर लिया। इस निर्णय से आजादी की का लक्ष्य कई वर्ष पीछे चला गया। उत्साही किन्तु नेतृत्वविहीन या विचलित स्थिति में फंसकर रह गयी। 


नमक आन्दोलन और डांडी यात्रा


       नमक आन्दोलन के लिए की गयी डांडी-यात्रा महात्मा गांधी के जीवन की उल्लेखनीय घटना है। कांग्रेस द्वारा ३१ दिसम्बर १९२९ में की गयी पूर्ण स्वराज्य प्राप्ति' की घोषणा के बाद भी जब अंग्रेज सरकार नहीं झुकी तो गांधी जी ने १८ मार्च १९३० में साबरमती में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में नमक कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की घोषणा की और कहा कि सबसे पहला सत्याग्रही मैं बनूंगा। उन्होंने कहा कि जैसे जल और वायु पर सबका अधिकार है उसी प्रकार नमक पर भी सबका प्राकृतिक अधिकार है।


      अंग्रेजों के समय जनता पर नमक बनाने का कानूनी प्रतिबन्ध था५ अप्रैल १९३० को गांधी जी साबरमती के पास डांडी नामक स्थान पर पहुंचे और वहां नमक बनाकर कानून तोड़ा। किन्तु सरकार ने उन्हें गिरफ्तार नहीं कियाआन्दोलन को सक्रिय करने के लिए नेताओं की गिरफ्तारी जरूरी थी। गांधी जी ने निश्चय किया कि पास ही धारसना नामक स्थान पर स्थित सरकारी नमक-गोदाम पर कब्जा करके नमक पर सरकार का एकाधिकार समाप्त किया जाये। उन्होंने अपनी योजना की सूचना सरकार को दे दीअब सरकार के लिए उनको गिरफ्तार करना अनिवार्य हो गया। फलतः५ मई १५१६ को दोपहर उनको गिरफ्तार कर लिया गया। गांधी जी की गिरफ्तारी से सत्याग्रह और आन्दोलन का जोर फिर से शुरू हो गया। 


महात्मा गांधी की जेल-कहानी


(जेल के अनुभव)


      १ जनवरी सन् १९०८ शुक्रवार की दोपहर को मुझे मेरे कुछ अन्य साथी स्वदेशवासियों के साथ, दो मास की साधारण कैद की सजा इस अपराध के कारण दी गई कि हमने 'एशियाटिक एमेण्ड मेण्टला' के अनुसार रजिस्ट्री का सार्टीफिकेट नहीं लिया था। जोहान्सबर्ग में सब से पहले मेरा मुकदमा पेश हुआ। हुक्म सुनने और कुछ देर कैदियों के अहाते में खड़े रहने के बाद एक कैदियों की सींखचों की बन्द गाड़ी में सवार कराया गया। जब मैं गाडी पर ले जाया गया, तब अदालत के बाहर हजारों की संख्या में लोग बाहर खड़े होकर प्रतीक्षा कर रहे पर मुझे चुपचाप अदालत की गाड़ी में बैठाकर जेल की ओर रवाना किया गया। मेरे मन में अनेक तरह के संकल्प-विकल्प उठ रहे थे। पहले मुझे ख्याल आया कि मुझे मेरे स्वेदशवासियों के साथ रखा जायेगा या क्या होगा?


    जेल के दरवाजे पर गाड़ी पहुंची तब हम लोगों को उतारा गया और 'स्वागत-भवन' में पहुंचाया गया। वहां पर हमारे नाम दर रजिस्टर हुए। हमारे अंगूठों के निशान लिये गये तथा नाप तोल करके और हमारे असली कपड़े उतारकर जेल की वर्दी पहनाई गयी। और पुलिस को हमारी पहुंच की रसीद एक परवाने के रूप में दे दी गयी। इसके बाद हम लोगों को अफ्रीका के वहशियों या जंगलियों की कोठरियों में बन्द कर दिया गया। हम में कितने ही उच्च-शिक्षा प्राप्त तथा कुलीन भारतवासी थे, पर उनकी किसी की जंगलियों से अधिक कुछ कद्र नहीं समझी गई।


      जिस कमरे में मैं बन्द किया गया था, उसमें १६ आदमियों के रहने की जगह थी। रोशनी का कोई उचित प्रबन्ध नहीं था। रात के लिए हमें एक डोल तथा एक टीन का ग्लास दिया गया। हमारे बिस्तर के लिए तख्त, दो कम्बल, बोरियां और सिरहाने के 'माफी' ! हमारी दरख्वास्त पर गवर्नर ने एक मेज और दो बेंचें हमारे कमरे में रख देने की अनुमति दे दी।


      सुबह छः बजे हमारी कोठरियां खोल दी जाती थीं, और शाम को बन्द कर दी जाती थीं। हमें ६ छटांक खाना दिया जाता था। हम में से कई आदमी उसे खा भी नहीं सकते थे, और न इनका पेट भरता थारविवार को ६ छटांक मांस भी मिलता था, पर हम लोग उसे नहीं खाते थे। इसलिए उसके बदले में पाव भर आलू ले लेते थे। खाने पीने में बड़ी गड़बड़ी थी पर हम लोंग कोई किसी तरह की प्रार्थना नहीं करना चाहते थे। गवर्नर ने एक दिन हम से जेल में आकर पूछा कि कोई शिकायत तो नहीं? इसका उत्तर दिया गया कि सब अच्छा है।


      इसके बाद बहुत दिन तक वह खाने का पहला इन्तजाम न रह सका और किसी तरह से तीन मास बिताकर हमने छः मास की यह कारावास की जीवनी समाप्त की।   


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