राष्ट्र निर्माण


राष्ट्र निर्माण?


        आज हमारा देश कहने को स्वतन्त्र है किन्तु क्या हमारे राष्ट्रनायक उक्त गर्वोक्ति को कर सकने की कल्पना भी आज कर सकते हैं? उलटे सब प्रकार का पतन और नारकीय दृश्य आजदेखने को मिलता है। कारण ? आज हमने उलटी राह पकड़ ली है | 


      राष्ट्र निर्माण की आज चर्चायें हैंपर निर्माण की यह योजना ईट पत्थरों के निर्माण तक सीमित होकर रह गई है। पुल और बाँधों का निर्माण, सड़कों का निर्माण और भवनों का निर्माण तो हो रहा है, किन्तु कैसे आश्चर्य की बात है कि जिस मनुष्य के लिये ये सभी निर्माण हैं उस मानव के निर्माण की कोई योजना हमारे राष्ट्र नायकों के पास नहीं है। हमारे विद्यालयों का उद्देश्य भी आज मनुष्य को अर्थ का क्रीतदास बनाना मात्र रह गया है।


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