पुरुषार्थ प्रारब्ध से बड़ा


पुरुषार्थ प्रारब्ध से बड़ा


      पुरुषार्थ चार प्रकार का है-(एक) अप्राप्त वस्तु को ईमानदारी से प्राप्त करने का प्रयत्न करना, (दूसरा) प्राप्त पदार्थों की रक्षा करना, (तीसरा) रक्षित पदार्थों को बढ़ाते रहना, (चौथा) बढ़े हुए धन तथा पदार्थों का सत्यविद्या की उन्नति में तथा सब का हित करने में खर्च करना।


       पुरुषार्थ प्रारब्ध से बड़ा है क्योंकि पुरुषार्थ से ही संचित प्रारब्ध बनता है। पुरुषार्थ के सुधरने से प्रारब्ध सुधरता तथा बिगड़ने से बिगड़ जाता है। उदाहरण-जैसे किसी व्यक्ति ने गेहूँ की खेती की। अनाज पककर तैयार हो गया तथा घर लाने तक सब काम उसने किया। यह पुरुषार्थ है। घर में पड़ा गेहूँ प्रारब्ध है। यह प्रारब्ध उसके पुरुषार्थ से ही बना है। यदि वह काम न करता तो उसके घर में अनाज न आता। दूसरा उदाहरण-किसी व्यक्ति ने किसी दूसरे प्राणी को सुख दिया। उस सुख देने के बदले में उसे भी ईश्वर की न्याय व्यवस्था से उतना ही सुख मिलेगाइस प्रकार उसने जो दूसरे को सुख देने का काम किया यह उसका पुरुषार्थ है। उसके बदले में उसे जो सुख मिलता है वह उसका संचित प्रारब्ध है। यही अवस्था किसी को दुःख देने की है | 


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