पुनर्जन्म


पुनर्जन्म


      वैदिक सिद्धान्त के अनुसार आत्मा अपने कर्मों के अनुसार शरीर बदलता रहता है। सभी शरीरों में मात्र मनुष्य ऐसा शरीर है जिसमें आत्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है। इस शरीर में जहां वह अपने पिछले किए कर्मों का फल भोगता है वहां नए कर्म भी करता है। इसीलिए मनुष्य शरीर को भोग योनि तथा कर्मयोनि कहा जाता है। अन्य सभी योनियां केवल मात्र भोग योनियां हैं क्योंकि उनमें जीव स्वतन्त्र होकर अथवा विचार कर कर्म नहीं कर सकता। वह या तो पराधीन होकर काम करता है या स्वभाव से करता है। मनुष्य से भिन्न सभी योनियों की ऐसा अवस्था है जैसी तलवार की। कोई व्यक्ति तलवार चलाकर के अच्छा या बुरा काम करता है तो उसका फल या दण्ड तलवार चलाने वाले को मिलता है, तलवार को नहीं। "


      अतः मनुष्य जन्म में किए हुए कर्मों के अनुसार ही आत्मा को शरीर मिलता है। यदि शुभ कर्म अधिक हों तो देव यानि विद्वान् का शरीर मिलता है। बुरे कर्म अधिक हों तो पशु, पक्षी, कीड़ा, पतंगा आदि का जन्म मिलता है। अच्छे और बुरे कर्म बराबर हों तो साधारण मनुष्य का जन्म मिलता है। यह जीव मन से शुभ अशुभ किए कर्म का फल मन से भोगता है। वाणी से किए का वाणी से, शरीर से किए का शरीर से भोगता है। महर्षि मनु ने वेदों के आधार पर ऐसा ही लिखा है। आत्मा मनुष्य या पशु पक्षी जिस भी योनि में जाता है उसी के अनुसार ढल जाता है-जैसे पानी में जो रंग डाला जाता है पानी उसी रंग का बन जाता है। पुनर्जन्म को गीता में ऐसा लिखा है -


वासासि जाणोनि यथा विहाय,


नवानि गह्नाति नरोऽपराणिक


तथा शरीराणि विहाय जीणोनि,


अन्यानि संयाति नवानि देही। 


       अर्थ-जिस प्रकार मनुष्य फटे पुराने कपड़ों को उतार कर नये पहन लेता है ठीक उसी प्रकार यह आत्मा जीर्ण (निकम्मे) शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण कर लेता है। 


       प्रश्न-हमें पूर्व जन्म याद क्यों नहीं ?


       उत्तर-जीव का ज्ञान दो प्रकार का होता है-एक स्वाभाविक और दूसरा नैमित्तिक। स्वाभाविक ज्ञान सदा रहता है और नैमित्तिक ज्ञान घटता बढ़ता रहता है। जीव को अपने अस्तित्व का जो ज्ञान है वह स्वाभाविक है। परन्तु आंख, कान आदि इन्द्रियों से जो ज्ञान प्राप्त होता है वह नैमित्तिक ज्ञान है। नैमित्तिक ज्ञान तीन कारणों से उत्पन्न होता है-देश, काल और वस्तु। इन तीनों का जैसा जैसा इन्द्रियों से सम्बन्ध होता है वैसा वैसा संस्कार मन पर पड़ता है। इनसे सम्बन्ध हटने पर इनका ज्ञान भी नष्ट हो जाता है। पूर्व जन्म का देश, काल, शरीर का वियोग होने से उस समय का नैमित्तिक ज्ञान नहीं रहता।


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