प्रेमचंद का शनिश्चरी किस्सा

प्रेमचंद का शनिश्चरी किस्सा



  1. (सम्पादकीय टिप्पणी - उत्तरप्रदेश के जिला प्रतापगढ़ स्थित कालाकांकर रियासत के तत्कालीन राजकुमार श्री सुरेशसिंह जी का अपन बड़े भाई एवं कालाकांकार के राजा श्रीयत अवधेश सिंह के साथ हिन्दी के प्रख्यात कथाकार एवं उपन्यासलेखक मुखी प्रेमचन्द के साथ सन् १९२८ में जो मलाकात हई थी. उसका एक रोचक एवं सत्रीय चित्रण हिन्दी को प्रख्यात मासिक पत्रिका कादम्बिनी के जुलाई १९७० के अंक में प्रकाशित हुआ था।

  2.  ज्ञातव्य है कि कालाकांकर के समीपस्थ ही जिला सुलतानपुर की अमेठी रियासत भी है, जिसके राजा रणञ्जय सिंह एवं उनके पूर्वज भी आर्यसमाज से बहुत प्रभावित थेराजा रणजय सिंह तो वर्षों तक उत्तरप्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान भी रहे हैं।

  3. कालाकांकर के राजा अवधेश सिंह द्वारा प्रदत्त जमीन पर ही आर्यसमाज प्रतापगढ़ आज भी स्थापित है। इस प्रकार ये दोनों राजपरिवार आर्यसमाज के सिद्धान्तों एवं मान्यताओं पर प्रगाढ़ निष्ठा रखते थे| 

  4. आर्यसमाज के महोपदेशक एवं प्रसिद्धसंस्कृत-लेखक डॉ. प्रशस्यमित्र शास्त्री ने हिन्दी की सुप्रसिद्ध पत्रिका 'कादम्बिनी' में लगभग पचास वर्ष पूर्व प्रकाशित यह विवरण हमें उपलब्ध कराया है। हम डॉ. शास्त्री जी को धन्यवाद देते हुए यह विवरण अविकल प्रकाशित कर रहे हैं। इसे पढ़कर आप जान सकेंगे कि कैसे आज भी शनिश्चर आदि ग्रहों की पूजा एवं उनका भय दिखाकर पण्डे पुजारी सामान्य जन को लूटते रहते हैं तथा अन्धविश्वासी लोग इनके फेर में पड़कर दु:ख प्राप्त करते हैं                                  - शिवदेव आर्य (कार्यकारी सम्पादक))


                 प्रेमचन्द जी के प्रथम दर्शन मैंने सन् १९२८ या २९ में किए। तब वे लखनऊ में गणेशगंज मोहल्ले में रहते थे। मरे पूज्य भाई स्व. राजा अवधेश सिंह कालाकांकर को साहित्य में अधिक रुचि तो नहीं थी. लेकिन उन्हें श्री |मैथिलीशरण गुप्त की 'भारत-भारती' और प्रेमचन्द जी की अरमानन्द जी की कहानियाँ बहुत पसन्द थीं। 'पंच-परमेश्वर' कहानी तो वे वे हम लोगों को न जाने कितनी बार सुना चुके थे।


लखनऊ में वे अक्सर प्रेमचन्द जी से मिलने उनके |घर जाते थे। एकबार मैं भी उनके साथ गया और उस (महान् साहित्यकार के दर्शन किए। उस समय वहाँ अन्य  सज्जन भी बैठे थे। हम लोग भी उस गोष्ठी में सम्मिलित हो गए और इधर-उधर की बातें होने लगीं। उसी समय एक पण्डित जी हाथ में तेल भरा कटोरा लिए जिसमें लोहे के शानिश्चर भगवान की मूर्ति आकंठ डूबी थीवे प्रत्येक पर दरवारे पर जाकर शनिश्चर भगवान के आगमन की सूचना , देकर लोगों से पैसे वसूल कर रहे थे। प्रायः प्रत्येक घर से स्त्रियाँ उन्हें कुछ-न-कुछ दे रही थीं।


मेरे भाई साहब कट्टर आर्यसमाजी थे. अतः उन्होंने प्रमचन्द जी से कहा - 'आपने शनिश्चर भगवान को कल आपत नहीं किया, कहीं वे खफा न हो जाएं।"


प्रेमचन्द जी बोले - मेरे शनिश्चर भगवान क्या करेंगे? आपको इसी सम्बन्ध में एक किस्सा सुनाता हूँ। एक सज्जन के ग्रह खराब थे। साढ़े साती शनिश्चर का प्रकोप थालोगों ने उन्हें सलाह दी कि वे किसी पण्डित से शान्ति का उपाय पता करें।


 वे एक पण्डित जी के पास गए और अपनी सारी दुःख-गाथा सुनाई। पण्डित जी ने यह सोचकर कि अच्छा आदमी है, कहा - 'इसमें तो काली वस्तु का दान लिखा है। गज-दान से आपका संकट टल जाएगा| 


उन्होंने कहा - 'अरे महाराज! गज-दान तो मेरे सामर्थ्य के बाहर की बात है। कुछ ऐसा बताइए जो मैं कर सकूँ ।'


पण्डित जी ने कहा - 'तो कौस्तभ मणि नीलम |मणि-ऐसी ही किसी मणि का दान करो।'


वे इसके  लिए भा तयार न हुए ता पाण्डत जा न विचार करके कहा - 'तो एक भैंस का दान कर दोसंकट टल जाएगा' लेकिन भैंस देने के लिए भी यजमान राजी नहीं हुआ


पण्डित जी ने कुछ सोचकर कहा - 'तब ऐसा करो एक बोरा उड़द का दान कर दो, संकट दूर हो जाएगा' लेकिन उसके लिए एक बोरा उड़द देना भी सम्भव नहीं था।'


पण्डित जी ने कहा - 'तब एक काली कमली काप्रवन्ध करो।' लेकिन काली कमली भी आजकल पन्द्रह-बीस रुपये से कम में नहीं आती, अत: उन्होंने इससे भी इनकार कर दिया। पण्डित जी का धैर्य टूट रहा था, लेकिन वे अपने यजमान को छोड़ना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने कहा 'तो लोहे की एक छुरी का ही दान कर दो।' लेकिन लोहे की छुरी मुफ्त में तो मिलती नहीं, उसमें भी डेढ-दो रुपये लगते ही हैं। यजमान ने उसके लिए भी अपनी असमर्थता प्रकट की


इतना कहकर प्रेमचन्द जी बोले 'राजा साहब ! मेरी भी हालत उसी आदमी की तरह है। मेरा भला शनिश्चर क्या बिगाड़ेंगे? आप आर्यसमाजी हैं, आपको भी कुछ डर नही नहीं है। उनसे तो धनवानों को डरना चाहिए।'


उनके द्वारा बताई इस रोचक कथा के कारण उनका प्रथम दर्शन आज भी मेरी स्मृति में ताजा बना हुआ है। 


                                                                         _-साभार : कादम्बिनी, जुलाई १९७०


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।