प्रणव या गायत्री जाप


प्रणव या गायत्री जाप


       प्रातः जागरण के साथ ही प्रथम करणीय कर्त्तव्य है प्रणव (ओंकार) जाप। 'ओउम्' यह परमेश्वर का मुख्य नाम है।


मुख्य नाम है ईश का ओमानुभूत प्रसिद्ध ।


योगी जपते हैं इसे गाते हैं सब सिद्ध ॥


      योगेश्वर श्री कृष्णादि अपने सभी पूर्वज ओंकार का ही जप करते थे। गीता में श्री कृष्ण ने प्रणव (ओंकार) जप का ही विधान किया है। सभी वेद शास्त्रों में ओंकार महिमा वर्णित है-


सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपाँसि सर्वाणि च यद्वदन्ति।


यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत्॥


      अर्थात् सभी वेद शास्त्र जिसकी महिमा का बखान करते हैं, जिसके लिए ब्रह्मचर्यादि तप का अनुष्ठान किया जाता है वह पद ओ३म् है।


      वैदिक स्वर्ग में प्रातः ही प्रथम झाँकी इस रुप में प्रस्तुत होनी चाहिए कि उसके सभी सदस्य (स्त्री-पुरुष) ओंकार जप करें। इसी के साथ धर्मार्थ चिन्तन का निर्देश महर्षि मनु ने किया है-


ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थों चानुचिन्तयेत्।


कायक्लेशांश्च तन्मूलान्वेद तत्वार्थमेव च॥४।९२


        अर्थात् मनुष्य को चाहिए कि वह ब्राह्म मुहूर्त में प्रातः उठे और उठकर (प्रणव जाप के पश्चात्) धर्म और अर्थ को विचारे और साथ ही धर्मार्थ की जड शरीर के दु:ख आदि को सोचे तथा वेदों के तत्व अर्थ को सोचें |


      निर्देशन- यह वैदिक स्वर्ग (आदर्श गृहस्थ) की प्रथम झाँकी का पहला दृश्य है जो प्रत्येक आदर्श गृहस्थ में प्रातः ही चारपाई से उठने के साथ ही देखने को मिलना चाहिए। सभी पवित्र प्रणव या गायत्री मंत्र का कम से कम आधा घण्टे पृथक् पृथक् जाप करें। अधिकस्य अधिकं फलम् |


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