प्रजातंत्र ही क्यों


प्रजातंत्र ही क्यों


         महामात्य चाणक्य ने सुशासन के लिए दण्ड को सर्वोपरि साधन माना है । एक समय सारे देश में यह माग्यता प्रचलित रही है कि राज्य में जब दण्ड खड़ा रहता है तब धर्म, नीति, सदाचार, आदि सबकी सुस्थिति होती है । ऐसी स्थिति में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि प्रजातंत्र में दण्ड का क्या स्थान होना चाहिए ? महाभारत में कहा गया है कि पहले न राज्य था, न दण्ड देने वाला राजा; प्रजा स्वेच्छा से अपने अपने धर्म का पालन करती हुई परस्पर शासन कर लिया करती थी। यह आदिम प्रजातन्त्र की पद्धति थी। प्रजातांत्रिक व्यवस्था के विषय में जब जब भी चिन्तन किया जायगा तब-तब प्रादिम प्रजातंत्र की यह व्यवस्था हमारे लिए प्रेरक सिद्ध होगी।


         दण्ड क्यों दिया जाता है ? राजा तो उसको दण्ड दिया करता था जो उसकी इच्छा के अनुरूप कार्य नहीं करता था। लोगों को प्रातंकित करने के लिए भी दण्ड दिया जाता था। प्रजातंत्र में ऐसी व्यवस्था नहीं चल सकती। यहाँ तो सामूहिक इच्छा के विपरीत आचरण करने वाले को ही दण्ड दिया जा सकता है सामूहिक इच्छा सदाचार के विरुद्ध हो तो उसको एक अकेला प्रादमी भी चुनौती दे सकता है। उसे कालकोठरी में डाल दिया जाय तो भी वह अनौचित्य के प्रति विद्रोह कर सकता है। यों कहा जा सकता है कि प्रजातंत्र में समूह की शक्ति को नियन्त्रित करने के लिए समझदार व्यक्ति सदैव समूह के अनुचित निर्णयों को चुनौती देते हैं। इसलिए यह उक्ति प्रसिद्ध हो गई है कि प्रजातंत्र में ईमानदार और स्पष्ट वक्ता अधिकतर जेल में ही अपना जीवन बिताते हैं । फिर भी लोगों को राजा के निरंकुश शासन की अपेक्षा प्रजातंत्र ही प्रिय लगता हैइसका एक कारण यह है कि प्रजातंत्र में भिन्न-भिन्न रुचियों वाले लोग निर्णय लेते हैं इसलिए अनुचित दण्ड से बचने की संभावना अधिक होती हैं। दूसरा पक्ष यह भी है कि इसी संभावना के कारण प्रजातत्र में अपराधों की संख्या बढ़ने लगती है।


          वस्तुत: प्रजातंत्र ऐसी आदर्श व्यवस्था है जिसमें अपराध पनपने की संभावना ही नहीं होती । कैकेयी के भ्राता अश्वपति ने अपनी प्रजातांत्रिक व्यवस्था की विशेषता उद्घोषित करते हुए कहा था कि उनके राज्य में न चोर है, न झूठ बोलने वाला; कोई स्वैर नहीं हैं तब स्वैरिणी कहाँ से होगी। इस तरह की घोषणा वही कर सकता है जो स्वयं सदाचारी हो । नेता सदाचारी न हों तो नागरिक सदाचारी हो ही नहीं सकते हमारे पड़ोसी राष्ट्रों में प्रजातत्र नेताओं के अनाचार के कारण नष्ट हुअा है। हमारे देश में सब नेता तो सदाचारी नहीं है; पर कुछ अवश्य ही अपने चरित्र को पवित्र रखना चाहते हैं । देश उन्हीं के बल पर चल रहा है। प्रजातंत्र में दण्ड का लक्ष्य यही हो सकता है कि सदाचारी और व्यवस्थाप्रिय लोगों को उसका संरक्षण मिले । वह कठोर तो हो; पर उसका उपयोग कम से कम करना पड़े।


                                                                                                                         -पंचोली


 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।