प्रजा

           


    प्र.) प्रजा किसको कहते हैं?


     उ.) जैसे पुत्रादि तन, मन, धन से अपने माता-पितादि की सेवा करके उनको सर्वदा प्रसन्न रखते हैं वैसे प्रजा अनेक प्रकार के धर्मयुक्त व्यवहारों से पदार्थों को सिद्ध करके राजसभा को कर देकर उनको सदा प्रसन्न रक्खे वह प्रजा कहाती है और जो अपना हित ओर प्रजा का अहित करना चाहे वह न राजा और जो अपना हित और राजा का अहित चाहे वह प्रजा भी नहीं है किन्तु उनको एक दूसरे का शत्रु, डाकू, चोर समझना चाहिये क्योंकि दोनों धार्मिक होके एक दूसरे का हित करने में नित्य प्रवर्त्तमान हों, तभी उनकी राजा और प्रजा संज्ञा होती है, विपरीत की नहीं।


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