प्राचीन साहित्य में आर्य शब्द का उल्लेख

  प्राचीन साहित्य में आर्य शब्द का उल्लेख


१. विदुरनीति


(क) विदुरनीति में आर्य के विषय में निम्न श्लोक पाये जाते हैं, अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं


आर्यकर्मणि रज्यन्ते भूतिकर्माणि कुर्वते।


हितं च नाभ्यसूचन्ति पण्डिता भरतर्षभ।


                                                                                                         -विदुरनीति


अर्थ-भरतकुलभूषण! पण्डितजन श्रेष्ठ कर्मों में रुचि रखते हैं, उन्नति के कार्य करते हैं तथा भलाई करनेवालों में दोष नहीं निकालते हैं।


(ख) न वैरमुद्दीपयति प्रशान्तं न दर्पमारोहति नास्तमेति।


न दुर्गतोऽस्मीति करोत्यकार्यं तमार्यशीलं परमाहुरार्याः॥


                                                                                                            -विदरनीति


अर्थ-जो शान्त हुए वैर को पुनः प्रज्वलित नहीं करता,जो कभी घमण्ड नहीं करता और न कभी निराश होता है तथा दुर्गति को प्राप्त होने पर भी जो कभी बुरा कार्य नहीं करता। उस उत्तम आचरणवाले पुरुष को सर्वश्रेष्ठ आर्य कहते हैं।


(ग) न स्वे सुखे वै कुरुते प्रहर्ष नान्यस्य दुःखे भवति प्रहृष्टः।


दत्वा न पश्चात्कुरुतेऽनुतापं स कथ्यते सत्पुरुषार्यशीलः॥


                                                                                                          -विदुरनीति 


अर्थ-जो अपने सुख में कभी प्रसन्न नहीं होता और न दूसरे के दुःख में कभी हर्षित होता है, दान देकर पीछे पछताता नहीं है, वह सत्पुरुष 'आर्य' कहलाता है


 


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