पेरियार लिखित सच्ची रामायण-जुठ का पुलिंदा 

पेरियार लिखित सच्ची रामायण-जुठ का पुलिंदा 


कार्तिक अय्यर 


       एक विशेष जमात ट्विटर पर स्वामी रामदेव का पेरियार को दिए बयान को लेकर विरोध कर रही है। स्वामी रामदेव ने रिपब्लिक टीवी पर कहा था कि 


      "पेरियार को मानने वाले बढ़ रहे है जो कहते है कि ईश्वर को मानने वाले मुर्ख होते है। ईश्वर सबसे बड़ा शैतान है। इस देश के लिए आदर्श लेनिन, मार्क्स नहीं हो सकते। मैं अम्बेडकर साहिब के संकल्पों का पोषक हूँ। लेकिन उनके चेले मूलनिवासी कांसेप्ट चलाने वाले लोग हैं। मैं दलितों से भेदभाव नहीं रखता।वैचारिक आतंकवाद के विरोध में देश को कानून बनाना चाहिए। ऐसे कांसेप्ट को सोशल मीडिया से हटाना चाहिए।"


      स्वामी रामदेव के बयान में कुछ भी गलत नहीं है। पेरियार समर्थकों द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जो बौद्धिक कचरा सोशल और प्रिंट मीडिया में फैलाया जा रहा हैं।  उसका निराकरण आवश्यक है। पेरियार के समर्थक कभी श्री राम जी की मूर्ति को जूते की माला पहनाकर उसका जुलुस निकालते हैं।  कभी उनके चित्र को जूते से पीटते हैं।  इस कुकृत्य के पीछे वह कुतर्क देने के अलावा कुछ नहीं करते। सभ्य समाज में ऐसे कृत्यों के लिए कोई स्थान नहीं हैं जो आपस में वैमनस्य फैलाये। इन  दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के पीछे पूर्ण रूप से विघटनकारी राजनीती है। तमिलनाडु के दिवंगत नेता पेरियार को इस विघटनकारी मानसिकता का जनक कहा जाये, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पेरियार ने दलित वोट-बैंक को खड़ा करने के लिए ऐसा घृणित कार्य किया था। ये लोग भी अपनी राजनीतिक हितों को साधने के लिए उन्हीं का अनुसरण कर रहे है। पेरियार ने अपने आपको सही और श्री राम जी को गलत सिद्ध करने के लिए एक पुस्तक भी लिखी थी जिसका नाम था सच्ची रामायण। 


          सच्ची रामायण पुस्तक वाल्मीकि रामायण की समान कोई जीवन चरित्र नहीं है। बल्कि हम इसे रामायण की आलोचना में लिखी गयी एक पुस्तक कह सकते है। इस में रामायण के हर पात्र के बारे में अलग अलग लिखा गया है। उनकी यथासंभव आलोचना की गई है। इस में राम ,सीता ,दशरथ हनुमान आदि के बारे में ऐसी ऐसी बाते लिखी गई है। जिनका वर्णन करने में लेखनी भी इंकार कर दे।  सब से बड़ी बात सच्ची रामायण में पेरियार ने जबरन कुछ पात्रों को दलित सिद्ध करने का प्रयास किया है। इन (स्वघोषित) दलित पात्रों का पेरियार ने जी भरकर महिमामंडन किया।  यहाँ तक की रावण की इस पुस्तक में बहुत प्रशंसा की गई है। यहाँ तक कहा गया है कि राम उसे आसानी से हरा नहीं सकते थे। इसलिए उसे धोखे से मार गया। इसी पुस्तक में लिखा है के सीता अपनी इच्छा से रावण के साथ गयी थी क्यों के उन्हें राम पसंद नहीं थे। 


       पेरियार श्री राम के विषय में लिखते है कि तमिलवासियों तथा भारत के शूद्रों तथा महाशूद्रों के लिये राम का चरित्र शिक्षा प्रद एवं अनुकरणीय नहीं है।


       राम इस कल्पना के विपरीत है। 


       रामायण का प्रमुख पात्र राम मनुष्य रूप में आदर्श और मर्यदापुर्षोत्तम थे। इसलिए वाल्मीकि ने स्पष्ट लिखा है कि श्री राम विश्वासघात, छल, कपट, लालच, कृत्रिमता, हत्या,आमिष-भोज,और निर्दोष पर तीर चलाने की साकार मूर्ति थे। 


        एतदिच्छाम्यहं श्रोतु परं कौतूहलं हि मे।महर्षे त्वं समर्थो$सि ज्ञातुमेवं विधं नरम्।। (बालकांड सर्ग १ श्लोक ५)


       आरंभ में वाल्मीकि जी नारदजी से प्रश्न करते है कि “हे महर्षि ! ऐसे सर्वगुणों से युक्त व्यक्ति के संबंध में जानने की मुझे उत्कट इच्छा है,और आप इस प्रकार के मनुष्य को जानने में समर्थ हैं।


       महर्षि वाल्मीकि ने  श्रीरामचंद्र को सर्वगुणसंपन्न कहा है।


     *अयोध्याकांड प्रथम सर्ग श्लोक ९-३२ में श्री राम जी के गुणों का वर्णन करते हुए वाल्मीकि जी लिखते है। 


     सा हि रूपोपमन्नश्च वीर्यवानसूयकः।


   भूमावनुपमः सूनुर्गुणैर्दशरथोपमः।९।


  कदाचिदुपकारेण कृतेतैकेन तुष्यति।


     न स्मरत्यपकारणा शतमप्यात्यत्तया।११।


     अर्थात्:- श्रीराम बड़े ही रूपवान और पराक्रमी थे।वे किसी में दोष नहीं देखते थे।भूमंडल उसके समान कोई न था।वे गुणों में अपने पिता के समान तथा योग्य पुत्र थे।९।।कभी कोई उपकार करता तो उसे सदा याद करते तथा उसके अपराधों को याद नहीं करते।।११।।


      आगे संक्षेप में इसी सर्ग में वर्णित श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हैं।देखिये श्लोक १२-३४।इनमें श्रीराम के निम्नलिखित गुण हैं।


१:-अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता।महापुरुषों से बात कर उनसे शिक्षा लेते।


२:-बुद्धिमान,मधुरभाषी तथा पराक्रम पर गर्व न करने वाले।


३:-सत्यवादी,विद्वान, प्रजा के प्रति अनुरक्त;प्रजा भी उनको चाहती थी।


४:-परमदयालु,क्रोध को जीतने वाले,दीनबंधु।


५:-कुलोचित आचार व क्षात्रधर्मके पालक।


६:-शास्त्र विरुद्ध बातें नहीं मानते थे,वाचस्पति के समान तर्कशील।


७:-उनका शरीर निरोग था(आमिष-भोजी का शरीर निरोग नहीं हो सकता),तरूण अवस्था।सुंदर शरीर से सुशोभित थे।


८:-'सर्वविद्याव्रतस्नातो यथावत् सांगवेदवित'-संपूर्ण विद्याओं में प्रवीण, षडमगवेदपारगामी।बाणविद्या में अपने पिता से भी बढ़कर।


९:-उनको धर्मार्थकाममोक्ष का यथार्थज्ञान था तथा प्रतिभाशाली थे।


१०:-विनयशील,गुरुभक्त,आलस्य रहित थे।


११:- धनुर्वेद में सब विद्वानों से श्रेष्ठ।


       कहां तक वर्णन किया जाये? वाल्मीकि जी ने तो यहां तक कहा है कि लोके पुरुषसारज्ञः साधुरेको विनिर्मितः।( वही सर्ग श्लोक १८)


      अर्थात्:- उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था कि संसार में विधाता ने समस्त पुरुषों के सारतत्त्व को समझनेवाले साधु पुरुष के रूपमें एकमात्र श्रीराम को ही प्रकट किया है।


       अब पाठकगण स्वयं निर्णय कर लेंगे कि श्रीराम क्या थे? लोभ,हत्या,मांसभोज आदि या सदाचार और श्रेष्ठतमगुणों की साक्षात् मूर्ति।


      श्री राम तो  रामो विग्रहवान धर्मः अर्थात धर्म के मूर्त रूप है। 


      पेरियार जैसे लोग श्री राम के चरित्र को क्या जाने। इनका उद्देश्य तो केवल जुठ फैला कर अपना राजनीतिक हित सिद्ध करना है। आप स्वयं बताये कि क्या पेरियार समर्थकों पर लगाम नहीं लगनी चाहिए?


      सलंग्न चित्र- तमिलनाडु में पेरियार समर्थक श्री राम की तस्वीर को जूते लगाकर अपना मानसिक दिवालियापन प्रदर्शित करते हुए।


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