पवित्रता
पवित्रता
अद्भिर्गात्राणि शुद्धयन्ति मनः सत्येन शुद्धयति।
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा बुद्धिर्ज्ञानेन शुद्धयति॥ (मनुस्मृति)
अर्थ-जल से शरीर के ऊपर के अंग पवित्र होते हैं, आत्मा और मन नहीं। मन तो सत्य मानने, सत्य बोलने और सत्य करने से शुद्ध होता है। विद्या और तप अर्थात् सब प्रकार के कष्ट भी सह के धर्म का पालन करने से जीवात्मा पवित्र होता है। ज्ञान अर्थात् पृथिवी से लेकर परमेश्वर पर्यन्त पदार्थों के विवेक से बुद्धि दृढ़ निश्चय पवित्र होती है।
क्षान्या शयन्ति विद्वांसो दानेनाकार्यकारिणः।
प्रच्छन्नपापा जप्येन तपसा वेदवित्तमाः॥ (मनुस्मृति)
अर्थ-विद्वान् सहनशीलता से शुद्ध होता है, बुरा काम करने वाला दान से. छुपकर पाप करने वाला पश्चात्ताप से तथा वेद को जानने वाला वेदानुकूल आचरण से शुद्ध होता है।