पत्नी पति की प्रसन्नता के लिये श्रृंगार करे

पत्नी पति की प्रसन्नता के लिये श्रृंगार करे


     पाणिग्रहण के मन्त्र में पत्नी के लिये आवश्यक आभूषण वस्त्रादि की व्यवस्था का दायित्व पति लेता है, साथ ही निर्देश करता है कि तुम मेरी प्रसन्नता के लिये शृंगार करो शोक कि आज की लेडियाँ पति की प्रसन्नता के लिये नहीं बाजार वालों को आकर्षित करने के लिये हाव-भाव एवं शृंगार करती हैं। सच्चे आभूषणों के सम्बन्ध में राजर्षि भर्तृहरि लिखते हैं-


केयूराणि न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला।


न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृता मूर्द्धजा॥


वाण्येका समलंकरोति पुरुष या संस्कृता धार्यते।


क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥


      यहाँ अन्य सभी आभूषणों का हेयत्व दिखाकर वाणी की मधुरता और सुष्ठुता को ही सच्चा आभूषण माना है। अन्यत्र नारी की लज्जा और शीलता को सच्चा आभूषण माना है। पवित्र वेदों में 'अधोपश्यस्व मोपरि' कहकर नारी को नीची निगाह रखने तथा अपने अंगों को ढके रहने का निर्देश किया है-


       इस प्रसंग में राधेश्याम 'रामायणी' ने सीता-अनुसूया सम्वाद में सच्चे आभूषणों का इस प्रकार वर्णन किया है।


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