पत्नी ही अमृत फल है।

पत्नी ही अमृत फल है


           इस प्रकार विवाह संस्कार की सभी विधियों और उनमें प्रयुक्त मन्त्रों में गार्हस्थ्य जीवन और पति-पत्नी व्यवहार के श्रेष्ठतम सूत्र दिये गये हैं। कितना उत्तम हो कि यह शिक्षा सूत्र प्रत्येक पति और पत्नी के दृष्टि-पथ में सदा बने रहें।


          पत्नी वह अमृत फल है जो पति को उसकी जीवन साधनाओं में सफल कराके अमरत्व प्रदान करती है। 


          पत्नी के इस अमृतत्व का मूल है मधुर भाषण। पत्नी का मधुर व्यक्तित्व सम्पूर्ण परिवार और मुख्यतया पति की संजीवनी शक्ति है। पवित्र वेदों में पत्नी को सुमना = अच्छे मन वाली या फूल की तरह सदा खिलती रहने वाली, शिवा = कल्याण करने वाली, अघोर चक्षुः = जिसके नेत्रों से माधुर्य झरता हो ऐसी प्रिय दष्टि वाली, अनघे = निष्पाप, अघ्न्या = हिंसादि पाप से शून्य (अतिथि का शुभ चिन्तन करने वाली) आदि पवित्र नामों से स्मरण किया है इन सभी सद्गुणों का मूल है- मधुर भाषणइसीलिये वेद माता ने कहा है-


“जाया पत्ये मधुमती वाचं वदतु शान्तिवाम्॥


पत्नी प्रिय भाषिणी हो, शान्तिदायक वाणी बोले।


          एक दृष्टान्त- इस सन्दर्भ में एक कहानी कहीं पढ़ी थी।एक सज्जन अमृत फल की तलाश में निकले। जिस गाँव का पता दिया था, वहाँ एक द्वार पर पहुँचकर उन्होंने अमृत फल की जिज्ञासा की। एक अत्यन्त वद्ध पुरुष ने कहा कि हां अमृत फल है, पर वह मेरे बड़े भाई के पास मिलेगा। पथिक आश्चर्य चकित था कि क्या इसका भी कोई बड़ा भाई होगा ? दूसरे द्वार पर पहुँच कर पुनः जिज्ञासा की। इस बार जो गृह-स्वामी द्वार पर आये वे पहले व्यक्ति से तो स्वस्थ थे फिर भी वृद्धता के कुछ लक्षण थे। बोले ठीक है, आपको मेरे छोटे भाई ने मेरे पास भेजा है। पर अमृत फल तो मुझसे भी बड़े भाई जो सामने के मकान में रहते हैं, उनके पास है। पथिक यह देखकर हैरान था कि जिसे सबसे बड़ा भाई बताया गया था वह तो सर्वथा जवान था। वृद्धत्व का कोई चिन्ह उनके शरीर पर न था। उन्होंने पथिक को आश्वस्त किया कि हाँ,, अमृत फल उनके पास हैतुरन्त ही गृह स्वामिनी आई। अतिथि को अन्दर ले गई। शीतल पेय और भोजन के साथ ही अमृतमयी वाणी से गृहदेवी ने अतिथि को संतृप्त कर दिया। कई दिन हो गये। पथिक गृहदेवी के मधुर व्यक्तित्व और आतिथ्य से तो अत्यन्त प्रसन्न था, पर उसे अमृत फल का अभी तक पता नहीं दिया गया था। पथिक की जिज्ञासा पर गह-स्वामी ने अपनी पत्नी को लक्ष्य कर बताया कि, क्या आप इतने समय में भी नहीं जान सके- मेरा 'अमृत फल' यही मेरी धर्म पत्नी है। निःसन्देह मैं तीनों भाइयों में सबसे बड़ा हूँ मेरे ऐसे सुन्दर स्वास्थ्य और यौवन का रहस्य यही अमृत फल है। परीक्षण के लिये वे पथिक को क्रमशः दोनों भाइयों के घर ले गये। मझले भाई की पत्नी ने अतिथि सत्कार के नाम पर बड़ी कठोर वाणी में अपने पति को फटकारा तथा सबसे छोटे (किन्तु सबसे वृद्ध) भाई की पत्नी ने तो बर्तन ही पति के सिर दे मारापथिक को 'अमृत फल' का रहस्य स्पष्ट हो चुका था।


          सच में पत्नी के हृदय की गहराई से निकाली, रसभीनी शान्ति दायिनी वाणी पा..के सकल श्रम और क्लान्ति को दूर कर उसे नई चेतना और जीवनी शक्ति प्रदान करने में समर्थ है और ठीक इसी प्रकार पति के 'दो प्यार के बोल' पत्नी को चिर यौवन प्रदान कर गार्हस्थ्य जीवन को वैदिक स्वर्ग बना देते हैं।


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