पति ही गुरु है

पति ही गुरु है


          पाणिग्रहण के चतुर्थ मन्त्र द्वारा पति प्रतिज्ञा करता है-'देवि ! मैं व्रत लेता हूँ संसार में तुम्हारे अतिरिक्त जितनी भी स्त्रियाँ हैं उनको मैं माता-बहिन वा पुत्री की दृष्टि से ही देखूगा इसी प्रकार पत्नी प्रतिज्ञा करती है- आपसे भिन्न जितने भी पुरुष हैं उनमें मेरी पिता, पुत्र और भाई की बुद्धि रहेगी।


          इसी मन्त्र में अन्य महत्वपूर्ण निर्देश भी हैं- (१) प्रथम यह कि ईश्वर एक है। एक मात्र वह ईश्वर ही उपास्य देव हैएक ईश्वर के नाम पर बहु देवतावाद का यहाँ निषेध है। (२) द्वितीय पत्नी को कहा गया है कि पति ही उसका गुरु है। स्त्रियों द्वारा कण्ठियाँ लेकर अन्य किसी को गुरु बनाना पाप है।


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