परस्पर चोरी का त्याग
परस्पर चोरी का त्याग
'न स्तेय महि' इन शब्दों में चोरी से कुछ भी खाने-पीने, पहिनने और यहाँ तक कि कोई भी कार्य करने का निषेध है। पत्नी सर्वोत्तम मित्र और मन्त्रदाता होने से पुरुष रुपी राजा की मन्त्री है। प्रत्येक कार्य, व्यापार में पत्नी की सलाह आवश्यक है।