पं. गेंदालाल दीक्षित

मैनपुरी काण्ड के अग्रणी शहीदं


पं. गेंदालाल दीक्षित


      दीक्षित (क्रान्तिकारी पं० रामप्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखित )


      आपका जन्म यमुना तट पर वटेश्वर के निकट मई ग्राम में हआ था। आपने मैट्रिकुलेशन (दसवां) दर्जा अंग्रेजी का पास किया था। आप जब औरैया जिला इटावा में डी० ए० वी० स्कूल के टीचर थे, तब आपने शिवाजी समिति की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य था, शिवा जी की भांति दल बनाकर लूटमार करवाना। उसमें से चौथ लेकर हथियार खरीदना और उस दल में बांटना। इसी की सफलता के लिए आप रियासत से हथियार ला रहे थे, जो कुछ नवयुवकों की असावधानी के कारण आगरा में स्टेशन के निकट पकड़ लिये गये थे। आप बड़े वीर तथा उत्साही थे। शान्त बैठना जानते ही न थे। नवयुवकों को सदैव कुछ न कुछ उपदेश देते रहते थे। एक-एक सप्ताह तक बूट तथा वर्दी न उतारते थे। जब आप ब्रह्मचारी जी के पास सहायता लेने गये तो दुर्भाग्यवश गिरफ्तार कर लिए गये। ब्रह्मचारी के दल ने अंग्रेजी राज्य में कई डाके डाले थेडाके डालकर ये लोग चम्बल के बीहड़ों में छिप जाते थे। सरकारी राज्य की ओर से ग्वालियर महाराज को लिखा गया। इस दल को पकड़ने का प्रबन्ध किया गया। सरकार ने तो हिन्दुस्तानी फौज भी भेजी थी। जो आगरा जिले में चम्बल के किनारे बहुत दिनों तक पड़ी रही। पुलिस रही। पुलिस सवार तैनात किये, फिर भी ये लोग भयभीत न हुए। विश्वासघात से पकड़े गये। इन्हीं में का एक आदमी पुलिस ने मिला लिया। डाका डालने के लिए दूर एक स्थान निश्चय किया गया, जहां तक जाने के लिए एक पड़ाव देना पड़ता था। चलते-चलते सब थक गए। पड़ाव दिया गया। जो आदमी पुलिस से मिला हुआ था, उसे भोजन लाने को कहा, क्योंकि उसके किसी सम्बन्धी का मकान निकट था। वह पूरी बनवाकर लाया। सब पूरी खाने लगे। ब्रह्मचारी जी जो सदैव अपने हाथ से बनाकर भोजन करते थे या आलू अथवा घुइयां भूनकर खा लेते थे, उन्होंने भी उस दिन पूरी खाना स्वीकार किया। सब भूखे तो थे ही, खाने लगा ब्रह्मचारी जी ने भी एक पूरी खाई। उनकी जबान ऐंठने लगी जो अधिक खा गये थे वे गिर गये। पूरी लाने वाला पानी लाने के बहाने चल दिया। परियों में विष मिला हुआ था। ब्रह्मचारी जी ने पूरी लाने वाले पर गाला चलाई। ब्रह्मचारी की गोली का चलना था, कि चारों ओर से गोली चलन लगी। पुलिस छिपी हुई थी गोली चलने से ब्रह्मचारी जी के कई गोलिया लगी। तमाम शरीर घायल हो गया। प० गेंदालाल जी की आंख में छर्रा लग गया। बाईं आख जाती रही। कुछ आदमी जहर के कारण मरे,कुछ गोली से मारे गये। सब पकड़ करके ग्वालियर के किले में बन्द कर दिये गए। किले में हम लोग पण्डित जी से मिले, तब चिट्ठी भेजकर उन्होंने हम को सब हाल बताया। एक दिन किले में हम लोगों पर भी सन्देह हो गया था। बडी कठिनता से एक अधिकारी की सहायता से हम लोग निकल सके।


      जब मैनपुरी षड्यन्त्र का अभियोग चला, पण्डित गेंदालाल जी को सरकार ने ग्वालियर राज्य से मंगवाया। ग्वालियर के किले का जलवायु बड़ा हानिकारक था। पण्डित जी को क्षय रोग हो गया था। मैनपुरी स्टेशन से जेल जाते समय ग्यारह वार रास्ते में बैठकर जेल पहुंचे। पुलिस ने जब हाल पूछा तो उन्होंने कहा-“बालकों को क्यों गिरफ्तार किया है? मैं हाल बताऊंगा" पुलिस को विश्वास हो गया। आपको जेल से निकाल कर दूसरे सरकारी गवाहों के निकट रख दिया। वहां पर सब विवरण जान, रात्रि के समय एक और सरकारी गवाह को लेकर पण्डित जी भाग खड़े हुएभागकर एक गांव में एक कोठरी में ठहरे। साथी कुछ काम के लिए बाजार गया हुआ था और फिर लौट कर न आया। बाहर से कोठरी की जंजीर बन्द कर गया था। पण्डित जी उसी कोठरी में तीन दिन बिना अन्न जल बन्द रहे। समझे कि साथी किसी आपत्ति में फंस गया होगा। अन्त में किसी प्रकार जंजीर खुलवाई। रुपये वह सब साथ ही ले गया था। पास एक पैसा भी न था। कोटा से पैदल आगरा आये। किसी प्रकार अपने घर पहुंचे। बहुत बीमार थे। पिता ने यह समझकर कि घरवालों पर आपत्ति न आए, पुलिस को सूचना देनी चाही। पंडितजी ने पिता से बड़ी विनय-प्रार्थना की और दो तीन दिन में घर छोड़ दिया। हम लोगों की बहुत खोज की। किसी का कुछ पता न पा दिल्ली में एक प्याऊ पर पानी पिलाने की नौकरी कर ली। अवस्था दिनों दिन बिगड़ रही थी, रोग भीषण रूप धारण कर रहा था, छोटे भाई तथा पत्नी को बुलाया। भाई किंकर्तव्यविमूढ़। वह क्या कर सकता था? सरकारी हस्पताल में भर्ती कराने ले गया। पण्डित जी की धर्मपत्नी को दूसरे स्थान पर भेजकर जब वह हस्पताल आया तो जो देखा उसे लिखते हुए लेखनी कम्पायमान होती है। पण्डित जी शरीर त्याग चुके थे। केवल उनका मृत शरीर मात्र ही पड़ा हुआ थास्वदेश की कार्य सिद्धि में पं० गेंदालाल दीक्षित ने जिस नि:सहाय अवस्था में अन्तिम बलिदान दिया उसकी स्वप्न में भी आशंका न थी। पण्डित जी की प्रबल इच्छा थी कि उनकी मृत्यु गोली लग कर हो। भारतवर्ष की एक महान् आत्मा विलीन हो गई और देश में किसी ने जाना भी नहीं।.......... (रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा' से)  


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।