पहली कल्पना
ईश्वरीय ज्ञान की आवश्यकता जगत् के प्रारम्भ में होती है। जब तत्कालीन मनुष्य-समाज में शिक्षकों का अभाव होता है, उस अभाव की पूर्ति ईश्वरीय ज्ञान द्वारा होती है। भारतवर्ष के ऋषि-मुनियों का ऐसा ही विचार था और अब भी ऋषि दयानन्द ने इसी कल्पना की पुष्टि की है और आर्यसमाज इसी विचार का पोषक है।
-महात्मा नारायण स्वामी