पारिवारिक शिष्टाचार और व्यवस्था


पारिवारिक शिष्टाचार और व्यवस्था


         १- पारिवारिक चर्या जिसकी चर्चा पूर्व की गई है, उसका पालन प्रत्येक सदस्य-सदस्या निष्ठा पूर्वक करे। सुविधानुसार समय में थोड़ा हेर-फेर किया जा सकता है। 


        २ - पिताजी, माताजी या सास-श्वसुर के पुकारने पर- 'जी आया जी' या 'जी, आई जी' अथवा 'हाँ जी, आई जी' ऐसा उत्तर बड़े सौम्य स्वर में देना चाहिये।


        ३- माता पितादि या सास-श्वसुर पुत्र, पुत्री और पुत्र-वधू से बातचीत करते समय -बेटा बेटी (बिटिया) आदि शब्दों का उपयोग . करेंविशेषतः किसी बात को समझाते समय।


        ४- गाली गलौज या अपशब्दों का प्रयोग सर्वथा निषिद्ध हैछोटों के साथ भी सुष्ठु और कोमल वाणी का प्रयोग हो।


          ५ - मकान यथा सम्भव एक ही मञ्जिल का हो जिससे किसी को चिल्लाकर या चीखकर न बुलाना पड़े।


          ६- किसी अतिथि के परिवार में आने पर उसके स्वागतादि में सभी समान रुप से रुचि प्रदर्शित करें


          ७- पर्दे की प्रथा अवैदिक और हानिकारक है किन्तु आज की लेड़ियों को अर्ध नग्न प्राय बेपर्दगी तो और भी हानिकारक एवं घृणात्मक है। अन्य व्यवस्थाओं की भाँति यहाँ भी मध्यम मार्ग ही श्रेयस्कर हैस्त्रियाँ सिर ढक कर रखें किन्तु मुख खुला हुआ तथा उनके शरीर का कोई अंग खुला न रहे, यह वेदादेश है। स्त्रियों की दृष्टि सदैव नीची रहे-लज्जा भार से नत-यह आवश्यक है


          ८- बड़ों के सिरहाने कभी न बैठें। बड़ों के आने पर उठकर खड़ें हों। उनके बैठ जाने पर ही बैठें। उच्चासन बड़ों को ही दें। मितभाषी होना सदैव ही अच्छा हैमुख्यतया बड़ों की चर्चा के बीच बहुत आवश्यक होने पर या उनके द्वारा कुछ. पूछे जाने पर ही बोलें


          ९- पति के कार्यालय से या कार्य-व्यापार से घर लौटने पर पत्नी उठाकर प्रसन्न मुद्रा में उस । स्वागत करेउस समय अन्य कार्यों का विचार न कर पति ज्ञा-पालन और सेवा शुश्रूषा का ही विशेष ध्यान रखें। सम्मिलित परिवार में अन्यों का भी यथायोग्य करे।


         १०- पारिवारिक बजट परिवार के सभी सदस्य-बन्धुयें भी मिलकर बनायें। व्यवस्था मुख्यतः ज्येष्ठ पुत्र और उसकी पत्नी करेअन्य सभी व्यवस्था में आवश्यक सहयोग दें।


         ११ - बीमा आदि की योजनाओं से यथोचित लाभ लिया जावे।


        १२- सप्ताह में एक दिन या मास में दो दिन या फिर कम से कम महीने में एक बार तो अवश्य ही वन भ्रमण नदी तट भ्रमण आदि का पुरोगम रखें, जिससे वातावरण में ताजगी बनी रहे। वर्ष में १५ दिन या १ महीने का देशाटन आदि का कार्यक्रम सपरिवार रखा जा सके तो अत्युत्तम ! पारिवारिक-चर्या का क्रम यथावत् बाहर भी रहे।


        १३- 'सत्य नारायण कथा' आदि की भाँति प्रतिवर्ष परिवार में किसी विद्वान या महात्मा द्वारा 'वेद सप्ताह' का आयोजन अवश्य रखें। सम्पूर्ण वातावरण बड़ा श्रद्धोपेग ही होअत्यावश्यक - 'वैदिक स्वर्ग' के सभी सदस्य-सदस्याय ऋषि दयानन्द के उपकारों को सदैव स्मरण रखें और आर्यसमाज के सत्संगों तथा सभी आयोजनों में भाग लें तथा मुक्त हस्त से दान दें। वैदिक धर्म पारिवारिक धर्म होवैदिक पर्यों और त्यौहारों को  सोत्साह मनाया जावे तथा वैदिक संस्कारों के माध्यम से 'वैदिकस्वर्ग' निर्माण द्वारा वह वैदिक युग पुनः इस धरती पर उतर सके जिसके लिये लिखा गया है -


रुये जमीं से आती एक वेद की सदा थी।


हर शर अदब से वेदों के रोबरु झुका था ।।


 


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