पाखण्डियों से बचिये !


पाखण्डियों से बचिये 


पाषण्डिनो विकर्मस्थात् वैडालवृत्तिकान् शठान्


हैतुकान् वकवृत्तींश्च वाङ्मात्रेणामि नाऽर्चयेत्॥


      अर्थात् (पाखण्डिनः) वेदनिन्दक-वेद विरूद्ध आचरण करने हारों (विकर्मस्थान्) वेद विरुद्ध कर्म कर्त्ता मिथ्या भाषियों (वैडाल वृत्तिकान्) विडाल जैसे छिपे और स्थिर (अवसर) ताक चूहे आदि प्राणियों को मार पेट भरता है, वैसे स्वभाव वाले जनों (शठान्) हठी दुराग्रही अभिमानी, आप जाने नहीं औरों का कहा माने नहीं, ऐसे ढीठ जनों (हैतुकान) कुतर्की व्यर्थ वकने वाले 'वेदान्तवादी' अर्थात् आज कल के हम और जगत् मिथ्या कहने वालों तथा वेदादि शास्त्र और ईश्वर भी कल्पित है इत्यादि गपोड़ा हाँकने वाले नास्तिकों (वकवृत्तीन्) बगुला भगत जैसे वक पैर उठा ध्यानावस्थित समान होकर झट मछली के प्राण-हरण करके अपना स्वार्थ सिद्ध करता है, वैसे आज कल वैरागी, खाकी, तम्बाकू, गाँजे, सुलफे जड चरस का दम लगाने वाले, नागे साधु आदि हठी दुराग्रही, वेद विरोधी मनुष्यों का (वाङ् मात्रेण अपि) वाणी मात्र से भी (न अर्चयेत्) सत्कार न करना चाहिए। क्योंकि इनका सत्कार करने से ये वद्धि को पाकर सारे संसार को अधर्म युक्त करते हैं। आप तो अवनति के काम करते ही हैं परन्तु साथ में गृहस्थ यजमान "सेवक को भी अविद्या रुपी महासागर में डुबो देते हैं।


      प्रस्तुत चित्र में माता सीता द्वारा दम्मी रावण के आतिथ्य और उसके घोर दुष्फल की घटना प्रत्येक सद्गृहस्थ को सदैव स्मरण रखनी चाहिए। मुख्य रुप से स्त्रियों को इस विषय में सावधान रहना चाहिए, क्योंकि वे अधिक भावुक होती है।


      आज तो ये साधु वेषधारी, हरामखोर, निकम्मे और पामर लोग लगभग १ करोड़ की संख्या में भारत माता का बोझ बढ़ा रहे हैं। कोई सट्टा बताता है कोई भाग्य की चाबी लिये घूमता है, कोई सन्तान दिलाता है कोई लोहे से सोना बनाने का पाखण्ड रचता है, कई बार ईसाई और मुसलमान आर्य देवियों का शील सर्वस्व हरने के लिये साधु वेश का सहारा लेते हैं।


      . आज अनेकों ऐसे नर पिशाच अपने को 'अवतार' कहते हैं। ये स्त्रियों को विवाह न करने और विवाहित स्त्रियों को पति, पुत्र, सास-श्वसुर सभी के प्रति कर्त्तव्यों से विमुख कर हरे-भरे सुखी गृहस्थों को उजाड़ रहे हैं तथा दुराचार के अड्डे कायम कर रहे हैं स्त्रियों को ये धूर्त कण्ठियाँ देते हैं, चेली बनाते हैं। पैर दबवाते हैं, झूठन खाने को देते हैं और उनके पवित्र सतीत्व को नष्ट कर काला मुंह करते हैं |


      इनमें से अनेकों गृहस्थी भी हैंमिनिटों में भगवान् के दर्शन कराने का माया जाल रच कर भोले स्त्री-पुरुषों पर दिन दहाड़े डाका डाल रहे हैं, ये पामर !


      इसलिये याद रखिये कि जहाँ तीर्थ रुप धर्मात्मा, विद्वान् औरसाधू महात्माओं की सेवा गृहस्थ का नित्य कर्त्तव्य है वहाँ नाम मात्र के पाखण्डी साधुओं जिनकी संख्या ही पौने सौ प्रतिशत आज है, से सदा बचना चाहिए। भूलिये नहीं कि अपात्र या कुपात्र की सेवा अथवा उसको दान देने से यजमान का और सामूहिक रुप में राष्ट्र का सर्वनाश हो जाता है |


 


 


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