मन्त्र-महिमा

मन्त्र-महिमा


हस्ते  दानो नृम्णा विश्वान्यमै देवान्धाद् गुहा निषीदन्।


विदन्तीमत्र नरो धियन्धा हृदा यत्तष्टान् मन्त्राँ अशंसन्॥


ऋषिः-पराशरः॥ देवता-अग्निः ॥ छन्दः-भुरिक्पतिः॥ 


विनय -  मन्त्रों की बड़ी महिमा हैमन्त्रों की शक्ति अद्भुत है। मन्त्रशक्ति से हम जो र प्राप्त कर सकते हैं। यह ठीक है कि हम प्रतिदिन वेदमन्त्रों का बहुत उच्चारण नते हैं. तो भी हमें उनसे कुछ प्राप्त नहीं होताइसका कारण यह है कि ये मन्त्र हमारे से नहीं निकले होते। जो भक्तलोग हृदय से घड़े हुए, हृदय की गम्भीर गहराई से निकले रा हार्दिक भावना से तीक्ष्ण हुए और पवित्र अन्तःकरण की गम्भीर, सूक्ष्म तथा विस्तृतज्ञानशक्ति से तेजोयुक्त होकर वेद-मन्त्रों को बोलते हैं, वे अपने ऐसे मन्त्रोच्चारण द्वारा उस 'ईक्षण' नामी दिव्य शक्ति को संचालित कर देते हैं जिससे बढ़कर संसार में अन्य कोई शक्ति नहीं है। इसलिए वे नर, वे सच्चे पुरुष, अपने अन्दर ही सब-कुछ पा लेते हैं। वे 'धी' को धारण करनेवाले, स्थितप्रज्ञ होने और निष्काम कर्म करने से हृदय-(आत्म)-शुद्धि "पा लेनेवाले, अपने हृदय में ही सब-कुछ पा लेते हैं। हृदय की गुफा में जो अग्निदेव छिपे बैठे हैं, सब ऐश्वर्यों को हाथ में लिये हुए और वेदों को अपने में धारण किये हुए हमारे १ अग्निदेव छिपे बैठे हैं, उन्हें पा लेते हैं। इस प्रकार मन्त्र-शक्ति द्वारा अग्निदेव को पा लेने १७ पर, प्रकट कर लेने पर, फिर संसार का कौन-सा ऐश्वर्य है, कौन-सा दिव्य गुण है जिसे ११ नर नहीं पा लेते! संसार के सम्पूर्ण धन-ऐश्वर्यों को हाथ में रक्खे हुए, देवों (दिव्य १) को अपनी ज्ञानमय शरण में लिये हुए ये हमारे अग्निदेव हमारे हृदय में ही स्थित पर हम हैं कि 'मन्त्रों का उच्चारण करके उन्हें पाते नहीं, हृदय से मन्त्रोच्चारण करना ९साखते, हृदय से निकले मन्त्रों से इन्हें प्राप्त नहीं करते | 


शब्दार्थ -अग्निदेव           विश्वानि = सम्पूर्ण        नम्णा =  ऐश्वर्यों को          हस्ते =  हाथ में        अमे = अपने घर में, अपनी ज्ञानमय शरण में       गहा =  [हृदय की] गुफ़ा में                  निषीदन् = बैठा हुआ, छिपकर बैठा हुआ ।        ईम = इसको          धियन्धाः = बुद्धि और कर्म को ठीक प्रकार धारण है         अशंसन् = उच्चारण करते हैं    मन्त्रान्  =  मन्त्रों को    विदन्ति =  तब पा लेते हैं


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