इन्द्रिय-स्पर्श-मन्त्रः


इन्द्रिय-स्पर्श-मन्त्रः


         ओं वाक् वाक् ।ओं प्राण: प्राणः।ओं चक्षुः चक्षुः।ओं श्रोत्रं श्रोत्रम्।ओं नाभिः।ओं हृदयम्।ओं कण्ठः।ओं शिरः।ओं बाहुभ्यां यशोबलम्।ओं करतलकरपृष्ठे॥


     अर्थ-'वाक् वाक्' वाग् इन्द्रिय और उसकी शक्ति बलवान् होवे।


'प्राणः प्राणः' प्राणेन्द्रिय और उसकी शक्ति बलवान् होवे। 'चक्षुः चक्षुः' चक्षु इन्द्रिय और उसकी शक्ति बलवान् होवे। श्रोत्रं श्रोत्रम्' कर्ण इन्द्रिय और उसकी शक्ति बलवान् होवे। 'नाभिः' शरीर का मूलबन्धन स्थान बलवान् होवे। 'हृदयम्' हृदय-रक्तसंचार अवयव बलवान् होवे। 'कण्ठः' कण्ठ आदि शब्दोच्चारण के स्थान बलवान् होवें। 'शिरः' मस्तिष्क एवं सभी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के मूल स्थान बलवान् होवें। 'बाहुभ्यां यशोबलम्' दोनों बाहुओं से मैं यश और बल को प्राप्त होऊं । ''करतलकरपृष्ठे' हथेली और उसके ऊपरी भाग में यश और बल होवें।


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