निर्लज वामपंथी और राम मंदिर

निर्लज वामपंथी और राम मंदिर


       इस लेख के विद्वान लेख ने इन वामपंथियों के लिये शिष्ट सम्बोधन उन्हें, उनके आदि प्रयोग किये थे मगर मैंने उन्हें बदल दिया। यह लम्पट, विषैले धूर्त सम्मान के लायक़ नहीं हैं और उस, उसे के प्रयोग की ही पात्रता रखते हैं। किन्हीं सज्जन को इससे एतराज़ हो तो मुझे दोषी मानियेगा।


         वामपंथी विषैले इतिहासकारों की ठगी के 10 सबूत-


1. वामपंथी इतिहासकार और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर धनेश्वर मंडल ने कोर्ट के आगे ये क़ुबूला कि बाबरी ढांचे की जगह खुदाई का वर्णन करती उनकी पुस्तक दरअस्ल उसने बिना अयोध्या गए ही लिख दी थी।


2.वामपंथी इतिहासकार सुशील श्रीवास्तव ने जज के आगे स्वीकार किया कि प्रमाण के तौर पर पेश की गई उसकी किताब में संदर्भ के तौर पर दिए पुस्तकों का उल्लेख उसने बिना पढ़े ही कर दिया है।


3.जेएनयू की इतिहास प्रोफ़ेसर सुप्रिया वर्मा ने ये माना कि उसने खुदाई से जुड़ी रेडार सर्वे की रिपोर्ट को पढ़े बग़ैर ही रिपोर्ट के ग़लत होने की गवाही दे दी थी।


4.अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर जया मेनन ने ये स्वीकारा कि वो तो खुदाई स्थल पर गई ही नहीं थी,लेकिन ये गवाही दे दी कि मंदिर के खंभे बाद में वहां रखे गए थे।


5. एक्सपर्ट के तौर पर उपस्थित वामपंथी सुवीरा जायसवाल जब क्रॉस एग्जामिनेशन में पकड़ी गई, तब माना कि उन्हें राम जन्मभूमि बाबरी मुद्दे पर कोई एक्सपर्ट ज्ञान नहीं है। जो भी जानकारी है वो सिर्फ अख़बारी ख़बरों के आधार पर है।


6. वामपंथी आर्कियोलॉजिस्ट शीरीन रत्नाकर ने सवाल-जवाब में ये स्वीकार किया कि दरअसल उसे बाबरी मसले से जुड़ी कोई “फ़ील्ड-नॉलेज” है ही नहीं।


7.“एक्सपर्ट” प्रोफ़ेसर धनेश्वर मंडल ने ये भी माना था कि “मुझे बाबर के विषय में इसके अलावा कि वो सोलहवीं सदी का एक शासक था और कुछ नहीं पता है। जज ने ये सुन कर कहा था कि इनके ये बयान, विषय के बारे में इनके छिछले ज्ञान को दर्शाते हैं।


8.वामपंथी सूरजभान मध्यकालीन इतिहासकार के तौर पर गवाही दे रहे थे पर क्रॉस एग्जामिनेशन में ये तथ्य सामने आया कि वे तो इतिहासकार था ही नहीं,सिर्फ पुरातत्ववेत्ता था।


9.सूरजभान ने ये भी स्वीकारा कि डीएन झा और आरएस शर्मा के साथ लिखी उसकी पुस्तिका “हिस्टोरियंस रिपोर्ट टू द नेशन” दरअस्ल खुदाई की रिपोर्ट पढ़े बिना ही (मंदिर संबंधी प्रमाणों को झुठलाने के दबाव में) सिर्फ छह हफ्ते में ही लिख दी गई थी।


10.वामपंथी शीरीन मौसवी ने क्रॉस एग्जामिनेशन में खुद कबूला है कि उसने झूठ कहा था कि राम जन्मस्थली का ज़िक्र मध्यकालीन इतिहास में है ही नहीं।


        ऐसे दृष्टान्तों की लिस्ट और लंबी है, पर विडंबना तो ये है कि लाज-हया को ताक पर रख कर वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर ने इन्हीं फरेबी, वामपंथी इतिहासकारों और अन्य वामपंथियों का नेतृत्व करते हुए उच्च न्यायालय के इसी फैसले के खिलाफ लंबे-लंबे पर्चे भी लिख डाले थे।


       किन्तु निर्लज्ज होना वामपंथी होने की प्रथम शर्त है...अत एव इनसे लज्जा की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।


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