नीति-नीयत अनुसार ईश्वर कृपा मन, साधना और कर्मानुसार फल

नीति-नीयत अनुसार ईश्वर कृपा मन, साधना और कर्मानुसार फल


        मनुष्य अपना संसार स्वयं बनाता है। अच्छे या बुरे कर्म स्वयं करता है और यथा कर्म तथा फल भोगता है परंतु विडम्बना यह कि अच्छा करता है तो स्वयं को धन्यवाद देता है और बुरा कर दुःख उठाता है तो भाग्य को कोसता व ईश्वर को दोषी मान लेता है। जबकि ईश्वर निष्पक्ष न्यायकारी है। वह अपनी तरफ से किसी को दुःख नहीं देता न ही कर्म फल माफ करता है। और अवैध चाहत को कभी पूरी नहीं करता, चाहे कितना ही सिर रगड़ लो। धन, दौलत, संतान, यश, लाभ-हानि, सुख- दःख अपने ही वैध या अवैध कर्मों का फल होता है।


ऐरन की चोरी करे, करे सुई को दान।

कोठे ऊपर चढ़कर देखे, कितना दूर विमान।।

वह विमान कभी नहीं आता। दूसरी ध्यान देने की बात यह है कि आप गलत चाहत रखोगे, गलत प्रयास करोगे, किसी के साथ पक्षपात करोगे तो आपकी मनोकामना कभी पूर्ण नहीं होगी क्योंकि आप ईश्वर की इच्छा से आगे नहीं पहुँच सकतेखोटी नीयत का परिणम खोटा ही होता है। कुछ प्रत्यक्ष उदाहरण इस प्रकार हैं


१. एक शराबी-कबाबी पुत्र के बाप ने हमेशा उसी का साथ दिया और दूसरे सीधे शरीफ बेटे को हमेशा घाटे में रखा, पक्षपात किया तो ईश्वर ने उस नेक, सीधे, सरल बेटे पर कृपा की। नेक पुरुषार्थ से वह आगे निकल गया उसके बच्चे पढ़-लिखकर संस्कारवान, चरित्रवान अधिकारी बन गए व शराबी, कबाबी के बेटे भी शराबी, अशिक्षित रह गए। अत: बेटों के साथ भी अन्याय मत करो।


२. एक शिक्षित व्यक्ति ने दो-दो घरों का धन दबाव से हड़प लिया। वैध-अवैध इकट्ठा कर लिया। रोड़पति से करोड़पति हो गया। अन्तिम आठ साल बीमारी में रहा और पाँच-दस करोड़ की सम्पत्ति छोड़कर चल बसा। धन काम न आया।


३. एक व्यक्ति ने शादी कर ब्याहता पत्नी को घर से निकाल दिया जो अत्यंत दु:ख देख मर गई। दूसरी शादी कर मन का सुख भोगा पर पूर्व पत्नी के श्राप से चार साल लकवे में पड़ा रहा और दुर्दशा से मौत हुई।


४. एक व्यक्ति ने बेटों से अधिक बेटियों को महत्व दिया सदा बेटियों का ही कमा-कमा कर घर भरा। ईश्वर ने बेटियों के भी बेटियाँ ही दी, यह सिलसिला आगे भी चला क्योंकि तेरे मन कछु और है दाता के मन और। उससे आगे कोई नहीं पहुँच सकता। बेटा मांगोगे तो बेटियाँ ही आएगी।


बेटा बेटी एक समान। दोनों होती अपनी जाम।

दोनों हमको प्यारे हैं। दोनों आँख के तारे हैं।।

फिर पक्षपात कैसा। महाभारत, रामायण के उदाहरण हैं। बाप व माँ द्वारा पक्षपात करने वाले धृतराष्ट्र व कैकई का क्या हुआ। क्या दुर्योधन को राज मिला या भरत ने ताज पहना। अत: किसी का हक नष्ट कर अन्य काभला मत करो।


ये तो मात्र दृष्टान्त है, दुनिया में सब हो रहा है किसी की व्यक्तिगत बात नहीं। ऐसे कई उदाहरण हम देख सकते हैं। आप अवैध व पक्षपाती रास्ते आगे बढ़ोगे तो उस ईश्वर को हिसाब बराबर करना आता है क्योंकि


मेरा सांई बनिया करे सकल व्यापार।

बिन डांडी बिन पालड़ा, तौले सब संसार।।

मनुष्य अल्पज्ञ है, ईश्वर सर्वज्ञ। वह ईश्वर से आगे नहीं निकल सकता। अन्याय का फल कड़वा होता है। यह कटु सत्य है, ईर्ष्या नहीं, समझें।।


जनहित


दो जुमले व्यवहार में आते रहते हैं पहला 'पब्लिक की माँग पर' और दूसरा 'जनहित में दोनों को सही-सही परिभाषित करना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है! पब्लिक डिमांड की दुहाई देकर हमारे फिल्म वाले कुछ भी परोस देते हैंऔर अंग्रेजी अखबार मैगजीन तक राशिफल धड़ल्ले से छापते रहते है! जनहित के नाम पर हमारी सरकारें जब चाहें जिस किसी के खिलाफ चाहें बरसों से चल रहा मकदमा वापस लेने का फैसला कर डालती हैं! किस (जन?) का हित उस में निहित होता है यह अनुमान लगाना अधिक मुश्किल नहीं होता! यह तो गनीमत है कि कहीं-कहीं अदालतें ऐसे आवेदन अस्वीकार कर देती हैं!


                                                                                                       • ओमप्रकाश बजाज,


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