नवलजंग पहलवान भक्त बन गया
नवलजंग पहलवान भक्त बन गया (महर्षि दयानन्द सरस्वती)
वहाँ से नर्मदेश्वर के मन्दिर के समीप सती की गढ़ी में प्रा विराजे। मढी से अनतिदूर नवलजंग पहलवान का अखाड़ा था। वह सदाचारी, सशील और बलवान था। उसकी एक ब्रह्मचारिणी बहन भी थी। दोनों भाई-बहन तैरने में ऐसे निपुण थे कि वर्षा ऋतु की चढ़ी गंगा कोतैर कर पार जाया करते थे। स्वामीजी के व्यक्तित्व और अगाध पाण्डित्य से प्रभावित होकर नवलजंग श्रीचरणों का भक्त बन गया। वह प्रतिदिन गंगारज लाकर और चन्दन की भाँति रगडकर बड़े प्रेम से उनके शरीर पर लगाया करता था।
एक दिन कुछ वामी मदिरा के मद में मस्त ऊट-पटांग बकते हए स्वामीजी के प्रासन के पास पाये और चिल्लाकर कहने लगे---"अरे दयानन्द ! बाहर निकल, तुझे वारुणी पिलाकर शुद्ध करें।" जब स्वामीजी ने देखा कि ये लातों के भूत बातों से नहीं मानेंगे, तब उन्होंने पकारकर कहा-"नवल जंग! ये मदिरा के मद में मतवाले वामी कोलाहल कर रहे हैं, तनिक जाकर इनका मद उतारनास्वामीजी के आदेश पर नवलजंग उनकी ओर ऐसे झपटा जैसे मदोन्मत्त हाथियों |