नमस्तेः सर्वोत्तम अभिवादन


नमस्तेः सर्वोत्तम अभिवादन


      संसार की सभी सभ्य जातियों में अभिवादन की भिन्नप्रणालियाँ प्रचलित हैं। कहना न होगा कि 'नमस्ते' उन सबमें अभिवादन का सर्वोत्तम प्रकार है। प्रमाण स्वरुप हम यहाँ एक घटना का उल्लेख करना चाहेंगे।


      कुछ वर्ष हुए अमेरिका में अन्तर्राष्ट्रीय सर्व-धर्म सम्मेलन के अवसर पर इस बात पर विचार किया गया कि सम्मेलन के दिनों में किस एक अभिवादन को सर्वमान्यता देकर उसका प्रयोग किया जाय ? सब धर्मों के प्रतिनिधयों ने अपने-अपने अभिवादनों की प्रशंसा एवं विशेषता पर अपने विचार व्यक्त किये। भारतवर्ष से आर्यसमाज के प्रतिनिधि श्री पं0अयोध्याप्रसाद जी ने 'नमस्ते' शब्द की व्याख्या की और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला। यह शब्द लोगों को इतना प्रिय लगा कि सर्व सम्मति से 'नमस्ते' को अभिवादन रुप में अपना लिया गया। उसी का परिणाम था कि कुछ समय पूर्व जब आपके प्रथम प्रधान मन्त्री पं0 जवाहरलाल नेहरू अमेरिका राज्य के निमन्त्रण पर वहाँ गये तो एक बाल पाठशाला-निरीक्षण के अवसर पर वहाँ के बालकों ने पण्डित जी का 'नमस्ते' कहकर अभिवादन किया इससे पण्डित जी प्रभावित हुए बिना न रह सके, क्योंकि वहाँ से लौटते समय मुम्बई के हवाई अड्डे पर स्वागतार्थ एकत्र जन समूह का उन्होंने 'नमस्ते' से ही अभिवादन किया | 


      यद्यपि भारत का राष्ट्रीय अभिवादन तो नहीं.तथापि अन्तीय अभिवादन के रुप में 'नमस्ते' को भारत प्रशासन द्वारा ही जा चका है। विदेशों में भारतीय राजदूत विशेष समारोह के अभिवादन के समय इसी का प्रयोग करते हैं। हमारे प्रधान मन्त्री पं0 जवाहरलाल नेहरू जब रूस गये थे तो उनके स्वागतार्थ मार्ग में पटिकायें लगाई गई थीं उनमें 'नमस्ते ! प्रधानमन्त्री स्वागतम्' भी एक हिन्दी भाषा में था जब रूस के प्रधान मन्त्री खुश्चेव और प्रधान बुलगानिन भारतवर्ष में आये तब उन्होंने यहाँ सर्वत्र हाथ जाड़कर नमस्त द्वारा अभिवादन किया। चीन के प्रधानमन्त्री चाऊएनलाई ने भारत से विदा होते समय हाथ जोड़कर 'नमस्ते' की।


      अमरीका में नेहरू डलेस वार्ता के समय श्री डलेस ने फोटोग्राफरों से निरन्तर हाथ मिलाने के कारण थककर नेहरूजी से विनोद में कहा, हमें परस्पर भारतीय ढंग से अभिवादन करना चाहिए। नेहरूजी ने कहा कि -अभिवादन के भारतीय तरीके 'नमस्ते' का यह बड़ा लाभ है कि बिना थके हजारों आदमियों को अभिवादन किया जा सकता है।


(हिन्दुस्तान दिल्ली, २१ दिसम्बर, १९५३)


      सच में नमस्ते ही आर्य जाति का सनातन अभिवादन है। राम-राम, जयरामजी की, जय सियाराम, जय श्रीकृष्ण, जयगोपाल, जय शिव, जय जिनेन्द्र, सत्य श्री अकाल, प्रणाम, दण्डवत्, पायलागन, वन्दे, जुहार आदि सभी अवैदिक अभिवादन हैं। वेद, शास्त्र, गीता, रामायण (वाल्मीकि) महाभारत आदि ग्रन्थों को देखने से स्पष्ट हो सकेगा कि स्वयं आर्य मुकट-मणि राम जिस अभिवादन को करते थे, योगिराज कृष्ण स्वयं जिस अभिवादन को करते थे, हमारे ऋषि-मुनि और अन्य सभी पूर्वज जिस अभिवादन को करते थे-वह अभिवादन नमस्ते ही है। हम ऋणी हैं ऋषि दयानन्द के-जिस प्रकार उन्होंने हमारा भला हआ नाम-'आर्य' हमें फिर से दिया, जिस प्रकार उन्होंने हमारा भला हआ उपास्यदेव और उसका मुख्य नाम 'ओउम्' तथा गुरुमन्त्र गायत्री हमें फिर से दिया उसी प्रकार हमारा भूला हुआ अभिवादन नमस्ते भी हमें फिर से दियाहम भूलें नहीं कि नमस्कार का प्रयोग भी अशुद्ध है | 


नमस्ते के बीच भव्य भाव अभिवादन का,


                 राम - कृष्ण आदि सब ही ने अपनाया है।


राधे-राधे, राम-राम, श्याम व सलाम बीच,


                 कहो अभिवादन का भाव कहाँ आया है।


वेद शास्त्र रामायण आदि सब ग्रन्थन में,


                    खोज-खोज हारे अन्य कुछ भी न पाया है।


देव दयानन्द की कृपा से है स्वदेश फिर,


                    नमस्ते की ओर जग सारा लौट आया है।


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