नारी सम्मान


नारी सम्मान


पितभिर्धातभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा।


पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभिः॥


                                     -मनु० अ०३। श्लोक ५५


      अर्थ-पिता, भ्राता, पति और देवर को योग्य है कि अपनी कन्या, बहिन, स्त्री और भौजाई आदि स्त्रियों की सदा पूजा करें, अर्थात् यथायोग्य मधुर भाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रखें। जिनकी कल्याण की इच्छा हो वे स्त्रियों को क्लेश न देवें।  


यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः|


यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया॥


-मनु० अ०३ श्लोक ५६


      जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात् सत्कार होता है, उस कुल में दिव्य गुण, दिव्य भोग और उत्तम सन्तान होते हैं, और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहाँ जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है(ऋषि भाष्य-संस्कार विधि:)


पूज्य जहाँ नारी होती है,


करते हैं वहाँ देव निवास।


और जहाँ नारी रोती है,


हो जाता सर्वस्व विनाश।


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