मुण्डन का अभिप्राय


मुण्डन का अभिप्राय


      षोडश संस्कारों में मुण्डन संस्कार का अपना महत्त्व है। व्यक्ति के हर जन्म होने पर मुण्डन परमावश्यक है। जन्मोपरान्त बालक जब द्वितीय जन्म के लिए आचार्य-उदर में जाने को उद्यत होता है, तब मुण्डन आवश्यक है और जब स्नातक हो पितृकुल में लौटने को उद्यत होता है तब मुण्डन आवश्यक है; वह फिर समय आता है कि जब वह संन्यास-दीक्षा लेता है तो समाधि-माता के उदर में गर्भ बनने से पूर्व मुण्डन कराता है। फिर अन्तकाल होने पर और इस जन्म से दूसरे जन्म के मध्य मुण्डन की प्रक्रिया दोहराई जाती है। उपरिलिखित मुण्डन संस्कार की व्याख्या से यह विदित होना चाहिए कि हर दो जन्मों के मध्य मुण्डन आवश्यक है; यह आवश्यक नहीं कि वह दो मुण्डनों के मध्य दैनिक मुण्डन करवाएअथर्ववेद के ब्रह्मचर्यसूक्त में दीक्षित स्नातक का वर्णन बड़ा मनोहारी है। कार्णं वसानो दीक्षितो दीर्घश्मश्रुः। वह आकर्षक वस्त्र पहने हुए दीक्षित लम्बी दाढ़ी-मूंछ वाला है। लम्बी दाढ़ी-मूंछ का होना इस बात का प्रमाण है कि उसने विद्यार्थी-जीवन में कभी मुण्डन नहीं कराया।


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