में संसार को कैद कराने नहीं श्राया
में संसार को कैद कराने नहीं श्राया (महर्षि दयानन्द सरस्वती)
यहाँ एक दिन एक बाहरण स्वामीजी के पास पाया और विनय पूर्वक स्वामी जी की सेवा में पान प्रस्तुत किया। स्वामीजी ने सहज स्वभाव से पान सुख मेंरख लिया, परन्तु उसका रस लेतही वे जान गये कि यह विषयक्त है। उससे बिनाकुछ कहे -सुने वे गंगा के पार चले गये और वस्ती तथा न्यौलीकर्म द्वारा विष के कृप्रभाव को दूर कर अपने प्रासन पर आ विराजे। इस घटना का पता स्वामीजी मत सय्यद मुहम्मद तहसीलदार को भी लग गया। स्वामीजी के प्रति अगाध श्रद्धा होने के कारण उन्होंने उस दुष्ट ब्राह्मण को पकड़वाकर बन्दी गृह में डाल दिया। वह प्रसन्न होता ना स्वामीजी के पास पहुँचा । परन्तु जब स्वामीजी ने उसे देखकर मुख फेर लिया और उससे बात तक न की, तब उसे बड़ा आश्चर्य हुना। अप्रसन्नता का कारण पूछने पर स्वामीजी ने कहा- मैंने सुना है कि आज आपने मेरे लिए एक व्यक्ति को कारागार में डाल दिया है। मैं संसार को कैद कराने नहीं, अपितु कैद से छुड़ाने पाया हूँ। यदि दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता तो हम अपनी श्रेष्ठता का परित्याग क्यों करें ?" ये शब्द सुनकर तहसीलदार महोदय रोमाञ्चित हो गये। उन्होंने आज तक क्षमा का ऐसा अवतार नहीं देखा था। वह स्वामीजी को प्रणाम करके चला गया और जाते ही उस बाहारण को स्वतन्त्र कर दिया।
अनूपशहर से स्वामीजी विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते हुए चासीना विराजे । स्वामीजी जहाँ जाते थे, वहीं उनके पास मेला-सा लग जाता था। सबको निर्भयता पूर्वक धर्मोपदेश देते और मतिपूजा, तीर्थ स्थान प्रादि का खण्डन करते थे।