मंगल-विधान

मंगल-विधान


   व्यावसायिक युग की आंधी में पश्चिम में यह विचार पैदा हा कि पसीना भी बेचा-खरीदा जा सकता है। श्रमिक अपने श्रम का मालिक है। अपनी वस्तु को सस्ती. महँगी दर पर बेच सकता है। जिसके पास खरीदने की शक्ति है वह इसका मूल्य देकर इसे खरीद सकता है और यह बात सहज ही में समझ में आती है कि खरीदने वाला एक बड़ी शक्ति का मालिक होने के कारण श्रम को मनमाने भाव पर खरीदेगा। अवसर मिलने पर धोखा भी देगा। शोषण करने में भी पीछे क्यों रहने लगा ?


        श्रम के क्रय-विक्रय को 'नया विचार' कह कर लोगों ने कितनी ही प्रशंसा पा ली हो; पर सच यह है कि इस विचार ने अादमी की महत्ता समाप्त कर दी अब आदमी एक संवेदनशील प्राणी नहीं रह गया अपनी संवेदनाओं के साथ जीने का अधिकार कुछ ही लोगों को प्राप्त हैशेष तो बिकने वाली वस्तु मात्र हैंसमाज में ऊंच- नीच का भाव इस विचार की ही देन है। ग्रादमी यादमी है ही नहीं, तब उसके साथ आदमियत का व्यवहार कोई करे तो क्यों करें।


         होटल में बरे की क्या स्थिति है ! या तो वह अनु- ग्रह का पात्र है या चोर-बदमाश है । या तो गाली खाएगा या गरदन झका कर 'टिप' बटोरेगा । सार कृषितंत्र में हलवाहा क्या है ? सेवक ही न ! फसल को पाला मार जाय तो उसे क्या ? उपज अच्छी हो, कोठार भर जाएं तो भी उसे क्या ? उसे तो हल चलाना मरदी में भी, तीखी गरमी में भी और बरसात में भी। वह क्या सोचता है ? कौन पूछे उससे ! वह जो चाहता है, वह नहीं होता। इसका कारण भी कौन खोजे? वह केवल हलवाहा है किसी की प्राशा-ग्राकां- क्षामों को पूरा करने वाला साधन मात्र कारखाने का रखान का मजदर क्या है ? किसी धनपति को तिजारा का भरने वाली व्यवस्था का एक पूर जा ही न ! प्रार, सारे नागरिक ? केवल वोटर । संवेदनाहान कठपुतला के पात्र मात्र ।


         इस व्यवस्था के रहते आदमी कैसे हो सकता है। एक दूसरे का होकर जीने वाला कस हा सकता है। किसी का सहारा कैसे बन सकता है। प्रात्मीयता की सीमाए" ही टूट गई। आदमी तो यादमा तब बन जब उसके पसीने की बूद का मोल समझा जाए वह मोल सिक्के में नहीं हो सकता अनुग्रह में नहीं हो सकता। श्रम का मोल श्रम ही हो सकता है। पसीने को पसीना ही खरीदे तो बात बने । एक का पसीना दूसरे का सहारा बने । किसान अन्न उपजाए तो चर्मकार जूते बनाये, बढ़ई लकड़ी के सामान बनाये, कुभकार घड़े बनाए, धोबी कपड़े धोए, दरजी कपड़े तैयार करे, अध्यापक ज्ञान प्रसार करे, सैनिक रक्षा करे, व्यापारी जीवनोपयोगी वस्तुओं का वितरण करे। कोई श्रम से भागे नहीं। श्रम का अपमान करने का साहस किसी को न हो ।  


          आपने रूमाल खरीदा। उसे पास रखते हुए ध्यान इस बात पर न रहे कि बिल कितना चकाया. वरन इस बात पर रहे कि बुनकर ने इसके साथ पसीना बहाने के साथ कुछ भावनाओं का ताना-बाना भी बना होगा। हलवाहे ने हल चलाते समय मुख से मौन भले ही साध ली हो; पर मन में कुछ सपने गड़े होंगे । अन्न खाते समय उन सपनों की पूति में सहायक बनने की बात मन में न भो पाए तो भी मोन शुभ कामना तो प्रकट हो दी। मंगलविधान इसका नाम है । हर आदमी पसीना बहा कर पूरी शक्ति से दूसरों का हित करे और मन में प्रभ से प्राथना करे कि जो लोग उसके जीवन के लिए मंगल चाहते रहे हैं उनका भी मंगल हो। चाहत रह ह उनका भा मगल हो।                                                                  -पंचोली 


 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।