मन


मन


      मन आत्मा का साधन है। मन के द्वारा ही आत्मा की इच्छित क्रियाएं होती हैंआत्मा का मन से, मन का इन्द्रियों से और इन्द्रियों का विषयों से (बाहरी संसा से) सम्पर्क होने पर ही आत्मा को ज्ञान तथा उसकी इच्छित क्रियाएं होती हैं। ज्ञान आत्मा का गुण है, मन का नहीं।


यस्मान् न ऋते किचन कर्म क्रियते। (यजुर्वेद)


      अर्थात्-यह मन ऐसा है जिसके बिना कोई भी काम नहीं होता। यही कारण है कि मन के सम्पर्क न होने पर हम देखते हुए भी नहीं देखते तथा सुनते हुए भी नहीं सुनते।


      मन आत्मा के पास हृदय में रहता है। वैद में इसे हत्प्रतिष्ठम् (हृदय में निवास वाला) कहा गया है। मन जड़ है। इसलिये आत्मा से पृथक होकर कोई भी क्रिया नहीं कर सकता। मन आत्मा के साथ जन्य-जन्मान्तर में रहता है। मृत्यु पर भी आत्मा के साथ दूसरे शरीर में जाता है। मुक्ति पर्यन्त वही मन आत्मा के साथ रहता है। मुक्ति के पश्चात् आत्मा को नया मन मिलता है। मन को अमृत इसीलिए कहा गया है कि यह शरीर के नाश होने पर नष्ट नहीं होता 


      क्योंकि मन एक जड़ पदार्थ है। इसलिए मन पर भोजन का प्रभाव पड़ता हैजैसा खावे अन्न वैसा होवे मन


      मन संस्कारों का कोष है। सभी संस्कार मन पर पड़ते हैं तथा वहीं जमा होते रहते हैं। जो संस्कार प्रबल होते हैं वे ही ठभर कर सामने आते हैं। जो दुर्बल होते हैं वे दबे पड़े रहते हैं। जैसे किसी गढ्ढे में बहुत प्रकार के अनाज डाले जाएं-पहले गेहूँ, फिर चने, फिर चावल, ठसके ऊपर जौ, ठसके ऊपर मूंग, उड़द आदि। देखने वाले को वही दिखाई देगा जो सबसे ऊपर होगा, नीचे का कुछ भी दिखाई न देगा।


       वैद्यक शास्त्र सुश्रुत के अनुसार-मन में सात्त्विक गुण प्रधान होने पर मनुष्य की स्थिति-अक्रूरता, अन्नादि वस्तुओं का ठीक ठीक वितरण, सुख, दुःख में एक सम, पवित्रता, सत्य, न्यायप्रियता, शान्त प्रकृति, ज्ञान और धैर्य


       रजोगुण प्रधान होने पर-घूमने का स्वभाव, अधीरता, अभिमान, असत्य भाषण, क्रूरता, ईर्ष्या, द्वेष, दम्प, क्रोध, विषय सम्बन्धी इच्छा।


       तामस मन के गुण-बुद्धि का उपयोग न करना, आलस्य-काम करने की इच्छा न होना, प्रमाद--अधिक नींद लेने की इच्छा, ज्ञान न होना, दुष्ट बुद्धि रहना।


       महर्षि मन लिखते हैं -


यथा यथा मनस्तस्य दुष्कतं कर्म गति।


तथा तथा शरीरं तत्तेनाधर्मेण मुच्यते॥ 


       अर्थ- यदि कोई मनुष्य किसी दुष्कर्म से छुटकारा चाहता है तो मन से ठस दुष्कर्म की खुब गर्ल्सना (सराहना का ठलट) किया करे। जैसे जैसे वह मन से दुष्कर्म की निन्दा करेगा वैसे वैसे ठस दुष्कर्म से छूटता चला जाएगा।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।