महर्षि वेदव्यास एवं आर्य शब्द का उल्लेख

महर्षि वेदव्यास एवं आर्य शब्द का उल्लेख 


        महर्षि वेदव्यास ने निम्न आठ गुणों से युक्त व्यक्ति को आर्य कहा है।


ज्ञानी तुष्टश्च दान्तश्च सत्यवादी जितेन्द्रियः।


दाता दयालुनम्रश्च स्यादार्यो ह्यष्टभिर्गुणैः॥


अर्थ-अर्थात् जो ज्ञानी हो, सदा सन्तुष्ट रहनेवाला हो, मन को वश में करनेवाला हो, सत्यवादी, जितेन्द्रिय, दानी, दयालु और नम्र हो, वह आर्य कहलाता है।


३. महाभारत


                               (क) लोको ह्यार्यगुणानेव भूयिष्ठं तु प्रशंसति॥


          भगवान वेदव्यास मैत्रेय से कहते हैं-संसार के लोग आर्य गुणवाले (उत्तम गुणवाले) पुरुष की ही अधिक प्रशंसा करते हैं।


(ख) आर्यरूपसमाचारं चरन्तं कृतके पथि।


सुवर्णमन्यवर्णं वा स्वशीलं शास्ति निश्चये॥


         जो कृत्रिम मार्ग का आश्रय लेकर आर्यों (श्रेष्ठ पुरुषों) के अनुरूप आचरण करता है, वह खरा सोना है या काँच, इसका निश्चय करते समय उसका स्वभाव ही सब-कुछ बता देता है।


(ग) नूनं मित्रमुखः शत्रुः कश्चिदार्यवदाचरन्।


वञ्चयित्वा गतस्त्वां वै तेनासि हरिणं कृशः॥


           एक विद्वान् किसी की दुर्बलता का कारण बतलाते हुए कहता है-निश्चय ही कोई शत्रु मुँह से मित्रता की बात करता हुआ आया, आर्य (श्रेष्ठ) पुरुष के समान बर्ताव करने लगा और तुम्हें ठगकर चला गया, इसलिए तुम दुर्बल और सफेद होते जा रहे हो।


 


 


 


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