महर्षि मनु के अन्य निर्देश
महर्षि मनु के अन्य निर्देश
परपत्नी तु या स्त्री स्याद् सम्बन्धा च यो नितः।
तां ब्रूयाद्भवतोत्येवं सुभगे भगिनीति च।।२।१२९
कोई ऐसी स्त्री हो जिससे रिश्ता न हो तो उसके साथ अभिवादन करने में देवी, सुभगे या बहिन जी का प्रयोग करना चाहिए। इसी प्रकार के पुरुष को 'भाई साहिब' कह कर अभिवादन करे |
मातुलांश्च पितृव्यांश्च श्वशुरानृत्विजो गुरुन्।
असावहमिति ब्रूयात्प्रत्युत्थाय यवीयसः॥२।१३०।
मामा, चाचा, ससुर, यज्ञ करने वाले पुरोहित गुरु इन लोगों को उठकर अभिवादन करे और इनका नाम न ले-चाहे वह आयु या पद में छोटे ही क्यों न हों।
मातृष्वसा मातुलानी श्वश्रूरथ पितृष्वसा।
सम्पूज्या गुरुपत्नीवत्समस्ता गुरुभार्यया॥२॥१३१
मौसी, माई, सास और बुआ गुरुपत्नी के समान पूज्य हैं। इनको भी उठकर अभिवादन करे।
भ्रातुर्भार्योप संग्राह्या सर्वर्णाऽहन्यहन्यपि |
विप्रोष्य तूप संग्राह्या ज्ञाति सम्बन्धियोषितः॥२।१३२॥
बड़े भाई की स्त्री (भाभी) के नित्य पैर छूना चाहिए और रिश्ते की अन्य स्त्रियों के विशेष अवसर पर।
नोट- यहाँ भाभी के चरण स्पर्श के प्रसंग में हमें सहसा आर्य जाति गौरव राम भ्राता श्री लक्ष्मण जी का स्मरण हो आता है।
(विषयक विशेष चर्चा आगे करेंगे।)
पितुर्भगिन्यां मातुश्च ज्यायस्यां च स्वसर्यपि।
मातृवद् वृत्तिमातिष्ठेन्माता ताभ्यो गरीयसी॥२।१३३
बुआ, मौसी और बड़ी बहिन के साथ माता के समान व्यवहार करें। हाँ माता उनसे भी बड़ी है |