महर्षि-कामना (गीत )


महर्षि-कामना (गीत )


प्रभो ! वेद-वीणा बजे विश्व भर मे।


सुने मन्त्रा झंकार प्रत्येक घर में। ।


सभी राष्ट्र होवे स्वराज्याधिकारी।


बली निर्बलों को न जकड़े स्वकर में।।


उगे व्योम में ज्ञान का दिव्य भानू।


खिले पुण्य पंकज विमल मानसर में।। 


पताका उड़ें ओ३म् की व्योम में फिरा।


बहे विश्व स्ववाधीनता की लहर में।।


अमर शान्ति का गान गूंजे गगन मे।


सुधा सी बरसने लगे सप्त स्वर में।।


यही कामना थी दयानन्द ऋषि  की।


गूंज थी उनके प्रत्येक स्वर में।।


 


 


 


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