महर्षि दयानन्द की मृत्यु से पहले का विवरण


महर्षि दयानन्द की मृत्यु से पहले का विवरण


        पाली स्टेशन पर स्वामीजी को वेग से पेचिश के साथ दस्त होने लगे ओर शूल जोर से होने लगा, उस समय डाक्टर सूरजमल ने कहा मैं आपको कुछ कोरोडिन देना चाहता हूँ जिससे कि दस्त में कमी हो। स्वामीजी महाराज ने पूछा कि इसमें क्या-क्या औषधि हैं सूरजमलजी ने कहा इसमें अफीम है, स्वामीजी महाराज ने कहा, “प्राण भले ही चले जायँ पर मादक द्रव्य सेवन कभी न करूँगा। अगर मैं मूर्छा की दशा में होऊँ तो भी तुम ऐसी औषधि कदापि काम में न लाना"।


       श्री राव राजा तेज सिंह वर्मा द्वारा जो उस समय महर्षि के साथ थे। यह विवरण दिव्य दयानन्द पुस्तक से है। 


       मृत्यु के पूर्व स्वामीजी आवू पहाड़ पर जोधपुर की कोठी में ठहरे हुए थे. और वहाँ इनका इलाज रेजीडेन्सी सर्जन लेफ्टिनेएट कर्नल डाक्टर एडम्स आई.एम.एस. ने भी किया था। जब स्वामीजी का स्वर्गवास अजमेर में हो गया तो जोधपुर नरेश महाराजा जसवंतसिहजी बहादुर ने आश्चर्यपूर्वक अपने सर्जन कर्नल एडम्स साहब से पूछा कि, “स्वामीजी ऐसे हट्टे-कट्टे होते हुए भी उनकी मृत्यु कैसे हो गई?" इस पर कर्नल डाक्टर एडम्स ने उत्तर दिया था कि, “मैंने काच (इरबीन) लगाकर स्वामी जी का गला व मुँह देखा था। जिससे साफ जाहिर होता था कि उनके पेट की आँतों में छेद हो गये थे और बाहर भी फफोले हो गये थे।"


      - श्री कुंवर चांदकरण शारदा एडवोकेट यह विवरण दिव्य दयानन्द पुस्तक से है।


       यह सारा विवरण महर्षि के उच्च आत्मबल को दर्शाता है। अत्याधिक कष्ट में भी महर्षि ने ना तो नशा करने वाली दवाई का उपयोग किया और ना ही विचलित हुए।


 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।