महर्षि दयानन्द की दार्शनिक मान्यताएँ

 महर्षि दयानन्द की दार्शनिक मान्यताएँ


         महर्षि दयानन्द गौतम मुनि-कृत 'न्याय दर्शन', कपिल मुनि-कृत 'साँख्य दर्शन', महर्षि कणाद विरचित 'वैशेषिक दर्शन', महामुनि पतंजलि-कृत 'योगदर्शन', महर्षि व्यास रचित 'वेदान्तदर्शन' और जैमिनी-कृत 'मीमांसादर्शन' को वेदानुकूल होने से प्रामाणिक मानते हैं। कई अन्य आचार्य इन दर्शनों में परस्पर विरोध मानते हैं, किन्तु ऋषि दयानन्द इन दर्शनों में समन्वय करते हुए इन्हें विभिन्न प्रकरणों के परिचायक मानते हैं। षड्दर्शनों में परस्पर विरोध नहीं है, वे एक दूसरे के पूरक हैं।


       कुछ विद्वान् कपिलाचार्य को अनीश्वरवादी मानते हैं, किन्तु महर्षि दयानन्द ऐसा नहीं मानते। उन्होंने सप्रमाण सिद्ध किया है कि सांख्यदर्शन में भी ईश्वर का प्रतिपादन है। महर्षि लिखते हैं-"जो कोई कपिलाचार्य को अनीश्वरवादी कहता है, जानो वही अनीश्वरवादी है, कपिलाचार्य नहीं।"


       महर्षि दयानन्द ईश्वर, जीव, प्रकृति इन तीन पदार्थों को अनादि मानते हैं, वे इन तीनों को प्रवाह से अनादि मानते हैं। महर्षि दयानन्द के अनुसार प्रकृति साधन, जीवात्मा साधक और परमात्मा साध्य है।


       जीव और ईश्वर- "स्वरूप और वधर्म्य से भिन्न और व्याप्य-व्यापक और साधर्म्य से अभिन्न है। अर्थात् जैसे आकाश से मूर्तिमान् द्रव्य कभी भिन्न न था, न है, न होगा और न कभी एक था, न है, न होगा इसी प्रकार परमेश्वर और जीव की व्याप्य-व्यापक उपास्य-उपासक और पिता-पुत्र आदि सम्बन्धयुक्त मानत हूँ।"


                                                                                                                                                        -(स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश: ५) 


       जीव- “जो इच्छा-द्वेष, सुख-दुःख और ज्ञानादि गुणयुक्त, अल्पज्ञ नित्य है, उसी का 'जीव' मानता हूँ।"


                                                                                                                                                         -(स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश: ४) 


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