महर्षि दयानन्द और राष्ट्र भाषा हिन्दी

महर्षि दयानन्द और राष्ट्र भाषा हिन्दी


           हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का स्वप्न सर्वप्रथम महर्षि दयानन्द ने लिया। संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित होते हुए तथा मातृभाषा गुजराती होते हुए भी उन्होंने अपने प्रायः सभी ग्रन्थ राष्ट्रभाषा हिन्दी में लिखे, जिसे उन्होंने 'आर्यभाषा' का नाम दिया। आर्यसमाज के उपनियमों में हिन्दी के अध्ययन को उन्होंने प्रमुखता दी। आज से सवा सौ वर्ष पूर्व उन्होंने जिस प्रकार की संस्कृत-निष्ठ किन्तु सरल हिन्दी का प्रयोग किया, उससे ऋषि दयानन्द को हिन्दी गद्य के निर्माताओं में स्वीकार किया गया है।


             उन्होंने कहा था-'मेरी आँखें वह दिन देखना चाहती हैं जब कश्मीर से कन्या कुमारी तक और अटक से कटक तक सम्पूर्ण देश में आर्य भाषा (हिन्दी) प्रतिष्ठित होगी।'


            "तिम्रो देवी र्मयोभुवः इडा सरस्वती मही" पवित्र वेद की यह सक्ति मानो उनकी प्रेरणा स्रोत थी, जिसमें मात संस्कति माता और मातभमि-इन तीन देवियों की पूजा का विधान बडे प्रेरक शब्दों में किया गया है।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।